झारखंड की राजधानी रांची में ट्रैफिक की समस्या को हल करने और राजधानीवासियों को जाम से मुक्ति दिलाने के लिए कई फ्लाईओवरों का निर्माण कार्य तेजी से हो रहा है। इसी कड़ी में कांटाटोली फ्लाईओवर, सिरमटोली-मेकान फ्लाईओवर बने। वहीं, रातू रोड से लेकर इटकी और पिस्का बन रहे फ्लाईओवर की समानों की देख-रेख के लिए 80 सुरक्षा गार्ड तैनात किए गए थे। लेकिन जिस एजेंसी को इन गार्डों की जिम्मेदारी सौंपी गई है, वह पिछले तीन महीनों से फ्लाईओवर की सुरक्षा में लगे गार्ड को वेतन नहीं दे रही है। फ्लाईओवर की समानों की देख-रेख के लिए 80 गार्डों को तैनात किया गया था, लेकिन उनमें से अब केवल 23 गार्ड बचे हैं। बाकियों ने नौकरी छोड़ दी है।
रहने के लिए मकान का किराया नहीं
फ्लाईओवर की देख-रेख में बिहार के नवादा जिला के संजय साव बताते हैं- साहब! तीन महीने से वेतन नहीं मिला है। खाने के लिए लाले पड़ गए हैं। मकान का किराया तक देने के लिए पैसे नहीं हैं। खाने के लिए ठेकेदारों को खाना देने आने वाली गाड़ी का इंतजार करते हैं। अगर उसमें भी खाना बचा तो मिल जाता है, नहीं तो ठेकेदार अपने खाने में से दे देते हैं। परिवार को दो पैसे देने के लिए और गुजारा करने के लिए गार्ड की नौकरी जाॅइन की। लेकिन यहां तो घर से भी ज्यादा दुःख है। आखिर हम अपना घर कैसे चलाएं? यह दर्द अकेले किसी एक गार्ड का नहीं, बल्कि उन सभी सुरक्षा गार्डों का है, जो एक बेहतर जिंदगी का सपना लेकर इस पेशे में आए हैं। घर से सैकड़ों किलोमीटर दूर रहकर गार्ड की नौकरी कर रहे हैं, लेकिन अब नाउम्मीदी में डूब चुके हैं। इतना ही नहीं, वे बताते हैं कि परिवार में 9 सदस्य हैं। बूढ़े मां-बाप की दवा से लेकर दैनिक जरूरतों की चीजें भी खरीदने के लिए पैसे नहीं हैं।
नौकरी के लिए दिया 15 हजार, मिलता है 10.5 हजार
फ्लाईओवर की सुरक्षा में लगे एक अन्य गार्ड ने बताया कि नौकरी के लिए 15,000 रुपये दिया। लेकिन हमें वेतन 12,000 हजार मिलता है। वहीं, कोई कहता है 10,500 रुपये मिलता है। हमें ये कहा गया था कि वेतन 15 हजार मिलेगा। लेकिन यहां वेतन 12,000 रुपये तय है, जबकि हाथ में मिलते हैं मात्र 10,500 रुपये। ऊपर से कपड़े और जूते का खर्च भी काटा जाता है। एक गार्ड ने बताया कि दो बार कपड़े और जूते के नाम पर 2,500 और 3,200 रुपये काट लिए गए। कपड़े तो मिल गए लेकिन जूते अब तक नहीं मिले।
12 घंटे का काम, नहीं मिलता आराम
देवदत्त तिवारी और श्यामदेव बताते हैं कि 8 बजे सुबह से 8 बजे शाम तक ड्यूटी करनी होती है। न तो यहां पानी की सुविधा है और न ही वाशरूम की। अपने पैसे से पानी खरीदकर पीना पड़ता है, वाशरूम के लिए बगल के नागाबाबा खटाल सब्जी मार्केट में जाते हैं।
30 दिन में एक दिन भी छुट्टी नहीं मिलती है और यदि छुट्टी ले लो तो उसका पैसा कट जाता है। यहां काम करना मजबूरी हो गई है हमारी। क्योंकि तीन महीने का वेतन नहीं मिला है तो इसको कैसे छोड़ दें।
सुरक्षा गार्ड पर हो रहे हमले
फ्लाईओवर की समानों की देख-रेख में तैनात गार्डों पर लगातार हमले हो रहे हैं। अभी हाल ही में गढ़वा के रहने वाले सुमित कुमार पर रात के समय स्थानीय लोगों ने हमला किया जिसमें उसे गंभीर चोटें आईं। गार्ड ने बताया कि सरिया और लोहे की प्लेट ले जाने से मना कर रहा था, तो कुछ लोग बगल से आए और हाथापाई करने लगे। इस स्थिति में इन गार्डों का दर्द केवल वेतन न मिलने तक सीमित नहीं है, बल्कि अपनी रक्षा करना भी एक चुनौती है। जीवन की उन मूलभूत आवश्यकताओं से भी वंचित हो जाने का है, जो एक नौकरीपेशा व्यक्ति को मिलनी चाहिए। महीनों का बकाया वेतन, साथ ही गैर जिम्मेदाराना रवैया इन गार्डों को हताश और असहाय बना रहा है।
क्या कहते हैं अधिकारी
“कंपनी की तरफ से राशि नहीं मिल रही है, इसलिए सभी सुरक्षा गार्ड्स को वेतन नहीं मिली है। जैसे ही कंपनी का अलाटमेंट जारी होता है, सभी सुरक्षा गार्ड्स को वेतन मिल जाएगा।”
-अशोक सिंह, झारखंड स्टेट हेड, परमार सिक्योरिटी सर्विस