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झारखंड में नहीं थम रही मानव तस्करी, एक साल में बढ़े 37 फीसदी मामले; जानिए कौन से जिले सबसे ज्यादा प्रभावित

झारखंड में नहीं थम रही मानव तस्करी, एक साल में बढ़े 37 फीसदी मामले; जानिए कौन से जिले सबसे ज्यादा प्रभावित
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साल 2007 में झारखंड की बंधनी कुसमा की 12 वर्षीय बेटी मानव तस्करी का शिकार हुई, तो परिवार में विपत्तियों की बाढ़ आ गई। पहले रिश्तेदार के घर से बेटी की किडनैपिंग फिर पति की मौत, इसके बाद पुलिस द्वारा बेटी के अपहरण की शिकायत भी ना दर्ज करना। इस तरह करीब 17 साल तक बंधनी अपनी बेटी को पाने की चाहत में पल-पल घुटती रहीं।

78 मामलों में 282 लोग हुए शिकार

झारखंड में इस तरह की सैंकड़ों कहानियां हर साल देखने को मिलती हैं। आंकड़े बताते हैं कि राज्य में मानव तस्करी की समस्या हर साल गंभीर रूप लेती जा रही है। वर्ष 2023-24 के अंत तक राज्य में कुल 78 मानव तस्करी के मामले दर्ज किए गए, जिसमें कुल 282 लोग इस संगीन अपराध के शिकार हुए। हालांकि, झारखंड पुलिस ने इन मामलों में 257 लोगों का रेस्क्यू कर निकाला, जिनमें 173 युवक और 84 युवतियां एवं महिलाएं शामिल थीं।

17 साल बाद दर्ज करा पाया केस

गरीबी, अशिक्षा और बेरोजगारी जैसे कारकों के चलते अधिकांश आदिवासी समुदाय की महिलाएं और छोटे-छोटे बच्चे तस्करों के आसानी से शिकार बन रहे हैं। मगर स्वंय सेवा संस्थाएं इन लोगों को मिलाने में जुटे हुए हैं। बंधनी को भी अक्टूबर माह में पता चला कि स्वयं सेवा संस्था की मदद से उसकी बेटी भी मिल सकती है, तो वे चाइल्ड राइट्स फाउंडेशन के सचिव बैधनाथ कुमार से मिलीं और अपनी दास्तां बयां कीं। बैधनाथ की मदद से बंधनी कुसमा ने अपनी बेटी ललिता कुसमा की किडनैपिंग की शिकायत पहली बार 17 साल बाद दर्ज करा पाईं। हालांकि एफआईआर दर्ज होने के एक माह बाद भी अब तक बेटी की कोई खबर नहीं है।

झारखंड से किडनैप कर पुणे में बेचा

तस्करी का शिकार हुई साहिबगंज के शिकरीगंज की रहने वाली 22 वर्षीय सुषमा कुजूर (बदला हुआ नाम) बताती हैं कि 2019 में जंगल से लकड़ी का बोझा लाने के दौरान, एक महिला और पुरुष मेरे करीब आए और किसी लोकेशन का पता पूछ मुझे कुछ सूंघा दिया। फिर मेरे साथ क्या हुआ, मुझे कुछ भी नहीं पता। बाद में करीब एक सप्ताह बाद मुझे पता चला कि मैं पुणे में हूं। वहां मुझे बेच दिया गया था, जहां हर रोज खूब मजदूरी से जुड़ा काम करना होता था। सभी मकान में साफ-सफाई, झाड़ू पोछा आदि करनी होती थी। करीब सात महीने बाद एक संस्था की मदद से मैं वहां से बाहर निकल सकी। वह बताती हैं कि साहिबगंज जैसे जिले में ये कहानी कोई आश्चर्यचकित करने वाली नहीं हैं। हर महीने ऐसी घटनाएं साहिबगंज जैसे आदिवासी बहुल क्षेत्रों में होती रहती हैं।

क्या कहती है संयुक्त राष्ट्र अमेरिका की रिपोर्ट

इस संबंध में संयुक्त राष्ट्र अमेरिका (यूएन) की 2012 की रिपोर्ट बताती है कि भारत में मानव तस्करी में 78 प्रतिशत एसटी समुदाय, 12 प्रतिशत एससी समुदाय, 7 प्रतिशत ओबीसी समुदाय से और 3 प्रतिशत जनरल समुदाय के लोग शिकार होते हैं। वहीं, एनसीआरबी की 2021 की रिपोर्ट बताती है कि देश में मानव तस्करी के मामलों में शीर्ष-10 राज्यों में झारखंड भी शामिल है। आंकड़े बताते हैं कि देश में कुल 81.5% तस्करी के मामले इन राज्यों से होते हैं। जिसमें झारखंड से 4.5 प्रतिशत तस्करी के मामले होते हैं।

बीते 5 सालों में हुआ 194 फीसदी का इजाफा

एनसीआरबी की 2021 की रिपोर्ट बताती है कि झारखंड में पिछले पांच वर्षों में मानव तस्करी के मामले में 194 प्रतिशत तक का इजाफा हुआ है। और तस्करी से रांची इस साल सबसे अधिक प्रभावित रहा। यहां इस साल सबसे अधिक मानव तस्करी के मामले देखे गए। रांची में वर्ष 2024 में, 47 लोग मानव तस्करी के शिकार हुए। इसके बाद धनबाद, लोहरदगा, साहिबगंज और गिरीडीह जिलों में भी बड़ी संख्या में मानव तस्करी के मामले सामने आए। पुलिस के आंकड़ों के अनुसार, पिछले एक साल में दर्ज मामलों की स्थिति निम्नलिखित रही :

रिपोर्ट के अनुसार, तस्करी के कुल 257 शिकार हुए लोगों में से 18 वर्ष से कम उम्र के 91 युवक और 18 वर्ष से अधिक उम्र के 86 युवक थे। वहीं 18 वर्ष से कम उम्र की 86 युवतियां और 18 वर्ष से अधिक की 17 महिलाएं इस अपराध का शिकार हुईं।

झारखंड के हॉटस्पॉट जिले

अगर इस रिपोर्ट के अन्य पहलुओं को देखें तो झारखंड में कुछ ही ऐसे हॉटस्पॉट जिले हैं, जहां हर साल ऐसी घटनाओं को अंजाम दिया जा रहा है। इन जिलों में साहिबगंज, रांची, खूंटी, चाईबासा, लातेहार और सिमडेगा शामिल हैं। यहां से सबसे अधिक युवतियां व महिलाओं की तस्करी होती हैं। लड़कियों की तस्करी के संबंध में चाइल्ड राइट्स फाउंडेशन के सचिव बैधनाथ कुमार कहते हैं कि इन‌ लड़कियों को दिल्ली, नोएडा, मुंबई, पुणे जैसे महानगरों में तस्करी करके उन्हें बेच दिया जाता है। जहां ये लड़कियां महानगरों में किसी घरों में नौकरानी या यौन संबंधी अपराधों में झोंक दी जाती हैं।

वहीं, युवकों के संबंध में बताते हैं कि कोरोना महामारी के बाद से रांची, लोहरदगा, धनबाद, गिरिडीह, पलामू और जामताड़ा ऐसे जिले बनकर उभरे हैं, जहां से सबसे अधिक युवकों की तस्करी होती हैं। ये युवक यहां से तमिलनाडु, गुजरात, आंध्र प्रदेश, केरल और कर्नाटक आदि राज्यों में भेजे जाते हैं, जहां उनसे सबसे अधिक मानव श्रम कराया जाता है।

दिनोंदिन बढ़ रहे अपहरण के मामले

प्रशासनिक अधिकारियों की उदासीनता पर सवाल उठाने वाली यह कहानी सिर्फ एक बंधनी की नहीं, बल्कि उन जैसे सैकड़ों गरीब, मजबूर और बेबस परिवारों की है। ऊपर से अधिकारियों की लापरवाही के कारण यह मामले हर साल बढ़ते जा रहे हैं। 2023 में लंबित मामलों की संख्या 36 थी। वहीं, वर्ष 2024 में मानव तस्करी के कुल 284 केस सामने आए। इनमें 78 मामले दर्ज किए थे। उन 78 मामलों में से 43 मामले अभी भी लंबित हैं, जिनका अबतक कोई अता-पता नहीं है। इन तस्करी के मामलों में कुल 97 तस्करों को गिरफ्तार किया गया। गिरफ्तार तस्करों में 81 पुरुष और 16 महिलाएं शामिल थीं।

झारखंड जैसे आदिवासी बहुल राज्यों में हर साल ये मामले गंभीर रूप लेते जा रहे हैं। 2023 में झारखंड में कुल 207 मामले सामने आए थे, जिनमें से 198 पीड़ितों को रेस्क्यू कर बाहर निकाला गया और 102 तस्करों को गिरफ्तार किया गया। अगर हम पिछले साल से तुलना करें तो एक साल में सिर्फ झारखंड में 36.7 प्रतिशत मानव तस्करी के मामले बढ़े हैं। 2023 में जहां 36 मामले लंबित थे। वहीं, वर्ष 2024 में यह आंकड़ा बढ़कर 282 तक पहुंच गया, जिसमें 257 लोगों को बचाया गया और 97 तस्करों की गिरफ्तारी हुई।

राजधानी रांची का रहा सबसे बुरा हाल

राजधानी रांची भी तस्करी के मामलों से अछूता नहीं रहा है और पिछले वर्ष 2024 में सबसे अधिक मानव तस्करी से प्रभावित रहा। रांची से 47 लोगों को तस्करी का शिकार बनाया गया। वहीं, बात करें अगर इसके पिछले वर्ष 2023 की तो रांची में 33 मामले आए थे। मतलब राजधानी में तमाम सुरक्षा व्यवस्था के बावजूद भी तस्करी जैसी घटनाओं को अंजाम दिया जा रहा है। सिर्फ राजधानी में तस्करी के मामलों में 2023 की तुलना में 42 प्रतिशत की बढ़ोतरी देखी गई। राजधानी में भी मानव तस्करी के इन बढ़ते मामलों ने सामाजिक और प्रशासनिक स्तर पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।

अफीम और ड्रग्स में गड़ीं मानव तस्करी की जड़ें 

मानव तस्करी के मामले में चाइल्ड राइट्स फाउंडेशन के सचिव बैधनाथ कुमार कहते हैं कि मैं पिछले दो दशक से तस्करी के विरुद्ध अभियान चला रहा हूं, इन दो दशकों में आठ हजार से अधिक लोगों को पुलिस और सीआईडी की सहयोग से रेस्क्यू कराया है। वे बताते हैं कि प्रत्येक दस वर्षों में अपराध का डायमेंशन झारखंड के इन जिलों में बदलता रहता है। अगर हम खूंटी, चतरा, रांची, साहिबगंज, हजारीबाग आदि जिले को देखें तो इससे पहले यहां अफीम की खेती ने अपना पैर पसारना शुरू किया। इसी दरम्यान तस्करी के भी मामले धीरे-धीरे शुरू हुए। मौजूदा समय में मानव तस्करी बढ़ने का मूल कारण अफीम और ड्रग्स है, जिसे पहले पुलिस प्रशासन के द्वारा रोकने का प्रयास नहीं किया गया।

खूंटी के पत्थलगढ़ी आंदोलन को याद करते हुए कहते हैं कि जब खूंटी में अफीम की खेती तेजी से बढ़ रही थी, तो प्रशासन ने रोकने पर ध्यान नहीं दिया। इसी को रोकने के लिए स्वयं सेवी संस्थाओं के माध्यम से पत्थलगढ़ी आंदोलन शुरू हुआ। उस अफीम का ही परिणाम है कि खूंटी जिले से सबसे अधिक महिलाओं की तस्करी हो रही हैं, प्रत्येक वर्ष यहां तस्करी के मामले बढ़ रहे हैं। झारखंड के आदिवासी बहुल राज्यों में ये मामले बहुत कम रिपोर्ट होते हैं, जिसकी वजह से तेज़ी से ऐसे मामले बढ़ रहे हैं। इसकी एक बड़ी वजह गरीबी, बेरोजगारी, अशिक्षा और जागरूकता का अभाव है।


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