झारखंड में पेसा कानून की मांग लंबे समय से चली आ रही है। यहां तक की इस कानून की मांग को लेकर झारखंड के खूंटी जिले में पत्थलगढ़ी आंदोलन भी किया गया। एक बार फिर से झारखंड हाईकोर्ट के आदेश के बाद राज्य में पेसा (PESA) कानून लागू करने की मांग जोर पकड़ती जा रही है। हाईकोर्ट ने 29 जुलाई 2024 को अपने फैसले में सरकार से कहा है कि पेसा कानून को दो महीने के भीतर लागू करे। हाईकोर्ट के इस आदेश के बाद पेसा एक्ट 1996 एक बार फिर राजनीतिक गलियारों में चर्चा का विषय बना हुआ है। आइये जानते हैं क्या है पेसा कानून और किन राज्यों में लागू है ये कानून और इसके लागू होने से झारखंड में क्या बदल जाएगा…
क्या है पेसा कानून?
पेसा (PESA – Panchayats Extension to Scheduled Areas) यह कानून 1996 में उन राज्यों के लिए लागू किया गया है, जहां आदिवासी जनसंख्या अधिक है और जो आर्थिक व सामाजिक दृष्टि से पिछड़े हुए हैं। इस कानून का मुख्य उद्देश्य स्थानीय स्वशासन को मजबूत करना और उन इलाकों में सही तरीके से विकास कार्य को बढ़ावा देना है।
पेसा एक्ट के माध्यम से इन क्षेत्रों में एक विशेष प्रशासनिक व्यवस्था बनाने की कोशिश की गई है, ताकि वहां का विकास बेहतर हो सके। यह कानून इसलिए जरूरी था, क्योंकि इन राज्यों में जो सामान्य प्रशासन होता है, वह आदिवासी क्षेत्रों तक पूरी तरह से नहीं पहुंच पाता था। पेसा एक्ट का उद्देश्य पंचायतों के संवैधानिक अधिकारों और आदिवासियों के पारंपरिक अधिकारों के बीच संतुलन स्थापित करना है।
किन राज्यों में लागू है पेसा कानून?
पेसा कानून देश के 10 राज्यों आंध्र प्रदेश, झारखंड, मध्य प्रदेश, ओडिशा, राजस्थान, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, गुजरात, तेलंगाना और हिमाचल प्रदेश राज्यों में लागू होना था। ये कानून इसलिए इन राज्यों में लागू होने थे क्योंकि इन राज्यों में जनजातियों की आबादी अधिक है। पेसा कानून बनने के तीन दशक बाद भी यह कानून प्रभावी रूप से झारखंड, उड़ीसा जैसे राज्यों में लागू नहीं हो पा रही है।
झारखंड में पेसा कानून लागू क्यों नहीं हो रहा
झारखंड सरकार वर्षों से ये कहती आ रही है कि अगली विधानसभा चुनाव में पेसा कानून पूरी तरह से राज्य में लागू हो जाएगा। लेकिन यह अबतक लागू नहीं है सका है। सरकार ने 2024 के विधानसभा चुनाव में भी इसे एक मुद्दा बनाया था, लेकिन चुनाव खत्म होते ही यह ठंडे बस्ते में चली गई। सरकार का कहना है कि पेसा कानून को लागू करने के लिए एक ठोस कार्ययोजना बनाई जा रही है। सरकार का प्रयास है कि कानून का क्रियान्वयन इस तरह हो कि विकास कार्य भी प्रभावित न हों और आदिवासियों के अधिकार भी सुरक्षित रहें। और इसके लिए ड्राफ्ट तैयार किए जा रहे हैं, ताकि प्रशासनिक मुद्दों को हल करने में कोई परेशानी न हो।
इस पर झारखंड आदिवासी मंच के प्रभाकर नाग का कहना है कि झारखंड में पेसा कानून लागू नहीं करने के पीछे कई कारण हैं। इसमें हम दोनों पक्षों को बताते हैं कि इसके पीछे क्या वजह है:
- नीतिगत अस्पष्टता : राज्य सरकार का कहना है कि पेसा कानून को लागू करने के लिए नियमावली तैयार नहीं की गई है, उसे तैयार की जा रही है। इसलिए इसे लागू करने में समय लग सकता है।
- राजनीतिक कारण : चुनावों के दौरान सभी दल पेसा कानून को लागू करने का वादा करते हैं, लेकिन सत्ता में आने के बाद इसे ठंडे बस्ते में डाल देते हैं।
- औद्योगिक और व्यावसायिक दबाव : अगर पेसा कानून लागू हो गया, तो उद्योगों और कंपनियों को आदिवासी क्षेत्रों में बिना ग्राम सभा की अनुमति के खनन या अन्य परियोजनाएं शुरू करने में दिक्कत होगी। इससे सरकार को नुक़सान होगा और कंपनियां कोई भी प्रोजेक्ट पर काम करने और निवेश के लिए एक बार सोचेगी।
- प्रशासनिक उदासीनता : कई सरकारी अधिकारी और विभाग इस कानून को लागू करने में रुचि नहीं दिखाते हैं। क्योंकि इससे प्रशासनिक प्रक्रियाओं में बदलाव होगा और आदिवासियों के लिए एक अलग कानून आ जाएगा।
- आदिवासियों में जागरूकता की कमी : कई इलाकों में आदिवासी समुदायों को पेसा कानून के लाभों के बारे में पूरी जानकारी नहीं है, जिससे वे संगठित होकर इसे लागू करने की मांग नहीं कर पाते हैं। इसलिए अक्सर चुनावों में इस कानून को लागू करने की बात होती है और चुनाव खत्म होते ही आदिवासियों के अधिकारी भी खत्म होने लगते हैं।
पेसा कानून लागू होने के बाद क्या बदल जाएगा
अगर झारखंड में पेसा कानून लागू हो जाता है, तो आदिवासियों को इस कानून से कई बड़े फायदे होंगे :
- ग्राम सभा को मिलेगा वास्तविक अधिकार: गांव के विकास कार्यों, योजनाओं और बजट पर ग्राम सभा का नियंत्रण होगा।
- खनन और जमीन अधिग्रहण पर रोक: ग्राम सभा की अनुमति के बिना कोई भी कंपनी या सरकार खनन, उद्योग या उनकी जमीन अधिग्रहण नहीं कर सकती।
- वन अधिकार मजबूत होंगे: जल, जंगल और जमीन पर आदिवासियों का स्वामित्व सुनिश्चित होगा।
- संस्कृति और परंपराओं की रक्षा: आदिवासी रीति-रिवाजों के अनुसार स्थानीय व ग्रामसभा के ही फैसले लिए जाएंगे।
- स्वशासन का अधिकार: आदिवासी समाज या ग्राम सभा अपने क्षेत्र का प्रशासन खुद चला सकेगा, जिससे उनकी राजनीतिक और सामाजिक स्थिति मजबूत होगी।
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