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वैवाहिक जीवन का स्याह समंदर; मैरिटल रेप और अननेचुरल सेक्स: पत्नी की सहमति को दरकिनार करती धारा 375

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कल्पना कीजिए मंडप में खड़ी दुल्हन के कानों में शहनाइयाँ गूँज रही हैं, परिवार आशीर्वाद दे रहा है, पंडित वेद मंत्र पढ़ रहे हैं। लेकिन इन सबके बीच वो ये नहीं जानती कि इन सात फेरों के साथ वो अपने शरीर के स्वामित्व का अधिकार भी खो रही है। क्योंकि भारतीय कानून में ‘मैरिटल रेप’ जैसा कुछ होता ही नहीं।

भारत में दंड संहिता की धारा 375 स्पष्ट रूप से कहती है कि यदि कोई पुरुष किसी महिला की इच्छा के विरुद्ध उसके साथ शारीरिक संबंध बनाता है, तो यह बलात्कार माना जाएगा। लेकिन फिर वही धारा एक अपवाद जोड़ देती है—यदि यह कृत्य पति द्वारा पत्नी के साथ किया जाए और पत्नी की उम्र 18 वर्ष से अधिक हो, तो इसे बलात्कार नहीं माना जाएगा। जी हाँ, कानून के अनुसार, शादी के बाद पत्नी की सहमति एक वैकल्पिक अवधारणा बन जाती है।

IPC 375 : कानूनी अपवाद या वैवाहिक शोषण ?
भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 375 बलात्कार को परिभाषित करती है, लेकिन उसी धारा में एक विसंगति मौजूद है। इसमें कहा गया है कि “यदि कोई पुरुष अपनी पत्नी के साथ संभोग करता है और पत्नी की उम्र 18 वर्ष या उससे अधिक है, तो यह बलात्कार नहीं होगा।” यहां पर पत्नी के ‘हाँ/कॉन्सेंट’ की कोई वेल्यू ही नहीं !

अब यहाँ एक गंभीर सवाल उठता है—अगर सहमति के बिना शारीरिक संबंध बनाना अपराध है, तो शादी इसे अपराध से कैसे मुक्त कर देती है? क्या विवाह पति को एक ‘लाइसेंस’ देता है कि वह जब चाहे, जैसे चाहे, पत्नी के साथ शारीरिक संबंध बना सकता है? अगर कोई विवाह महिला की स्वतंत्रता को खत्म कर देता है, तो क्या उसे कारावास नहीं कहा जाना चाहिए?

पति का प्रेम या पत्नी की कैद ?
दुनिया के 100 से ज्यादा देश मैरिटल रेप को अपराध मान चुके हैं, लेकिन भारत इस सूची में “संस्कृति बचाने” के नाम पर शामिल नहीं हुआ। आखिर क्यों? क्योंकि यहाँ शादी सिर्फ प्यार और सम्मान का नाम नहीं, बल्कि ‘समर्पण’ का भी प्रतीक है—भले ही वह जबरदस्ती ही क्यों न हो!

फिर पवित्रता का रोना क्यों ?
पितृसत्तात्मक सोच से लबरेज यह समाज महिलाओं को संपत्ति समझता है और संपत्ति के साथ बलात्कार संभव नहीं—यही तर्क दिया जाता है। शादी से पहले महिला की ‘पवित्रता’ का रोना रोया जाता है, लेकिन शादी के बाद वह पति की ‘अधिग्रहित भूमि’ बन जाती है, जिस पर वह जब चाहे हल चला सकता है।

यह भी पढ़ें: प्यार में शारीरिक संबंध बनाना रेप नहीं माना जा सकता: सुप्रीम कोर्ट

संस्कृति के नाम पर दी गई दलील
संस्कृति के नाम पर दलील दी जाती है कि अगर मैरिटल रेप को अपराध बना दिया गया, तो परिवार टूट जाएँगे। जैसे कोई कहे कि अगर गुलामी खत्म कर दी जाए, तो नौकर-चाकर रखने की परंपरा खत्म हो जाएगी! परिवार वह होता है जहाँ प्यार, सम्मान और सहमति होती है, न कि जहाँ जबरदस्ती और भय का राज हो।

कागज़ी अधिकार बनाम जमीनी हक़ीकत 
हमारा संविधान कहता है कि हर नागरिक को समानता और स्वतंत्रता का अधिकार है, लेकिन समाज कहता है कि शादी के बाद पत्नी की स्वतंत्रता पति के हाथ में होती है। आर्टिकल 21 जीवन और स्वतंत्रता की रक्षा की बात करता है, लेकिन शादी के बाद यह स्वतंत्रता जादुई रूप से गायब हो जाती है।

इस तरह जब भी इस कानून को बदलने की बात होती है, तो कहा जाता है कि ‘भारत की संस्कृति तैयार नहीं है।’ लेकिन सच तो यह है कि भारत में बदलाव तब ही आता है जब उसे लाठी से हांककर लाया जाए—चाहे वह सती प्रथा हो, बाल विवाह हो या दहेज प्रथा।

आखिर कब तक!
आखिर कब तक! कब तक महिलाओं के अधिकारों को ‘संस्कृति’ की आड़ में कुचला जाएगा? कब तक “पति की सहमति ही पत्नी की सहमति” का जादुई मंत्र चलता रहेगा? शादी प्यार का रिश्ता हो सकता है, लेकिन यह किसी महिला की स्वायत्तता छीनने का लाइसेंस नहीं। समाज को तय करना होगा कि हम महिलाओं को इंसान मानेंगे या अब भी संपत्ति समझेंगे। क्योंकि अगर शादी के नाम पर किसी की आत्मा और शरीर का नियंत्रण छीना जाए, तो उसे रिश्ता नहीं, कारावास कहते हैं।

असहमति, अननेचुरल सेक्स और…
शारीरिक संबंध बनाने के नाम पर एक पत्नी के साथ ऐसी बर्बरता हुई कि उसे अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा। दर्द में कराहते हुए उसकी मृत्यु हो गई। पीड़िता ने बयान में कहा कि उसके साथ उसकी मर्जी के खिलाफ अप्राकृतिक (अननेचुरल) संबंध बनाए गए, जिसके कारण वह इस हालत में पहुंची। सोचकर ही आत्मा कांप जाती है कि किसी महिला के साथ इतनी क्रूरता हुई कि उसकी जान ही चली गई।

आरोपी पति की सजा हुई माफ
लेकिन इस पूरे मामले पर छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट का मानना अलग है। चूंकि पत्नी बालिग थी और संबंध बनाने वाला उसका पति था, इसलिए यह किसी भी अपराध की श्रेणी में नहीं आता। हाईकोर्ट ने इसी टिप्पणी के साथ फैसला सुनाया और उस केस में पीड़िता के पति की 10 साल की सजा माफ हुई और आरोपी को तुरंत रिहा करने का आदेश जारी किया गया।

यह कैसा न्यायिक ढांचा
यह कैसा न्यायिक ढांचा है, जहाँ महिलाओं को आज तक पति की संपत्ति माना जाता है? क्या विवाह के बाद महिला की सहमति का कोई मूल्य नहीं रह जाता? कल्पना कीजिए मंडप में खड़ी दुल्हन के कानों में शहनाइयाँ गूँज रही हैं, परिवार आशीर्वाद दे रहा है, पंडित वेद मंत्र पढ़ रहे हैं। लेकिन इन सबके बीच वो ये नहीं जानती कि इन सात फेरों के साथ वो अपने शरीर के स्वामित्व का अधिकार भी खो रही है। क्योंकि भारतीय कानून में ‘मैरिटल रेप’ जैसा कुछ होता ही नहीं।

यह लेख दिप्ती वर्मा ने लिखा है। दिप्ती ने भारतीय जनसंचार संस्थान, अमरावती से हिन्दी पत्रकारिता की पढ़ाई की है। अभी वह प्रसार भारती में कार्यरत हैं।


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