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प्यार में शारीरिक संबंध बनाना रेप नहीं माना जा सकता: सुप्रीम कोर्ट

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सुप्रीम कोर्ट ने 3 मार्च को एक अहम फैसले में स्पष्ट किया है कि यदि कोई महिला लंबे समय तक किसी पुरुष के साथ सहमति से शारीरिक संबंध बनाती है और बाद में शादी का वादा पूरा न करने पर बलात्कार का आरोप लगाती है, तो इसे रेप नहीं माना जा सकता है, जब तक कि यह साबित न हो कि पुरुष ने शुरू से ही धोखाधड़ी की मंशा से विवाह का झूठा वादा किया था। इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने एक महिला द्वारा अपने पुरुष साथी के खिलाफ दर्ज कराई गई एफआईआर को खारिज कर दिया, जिसमें उसने 16 वर्षों तक सहमति से संबंध रखने के बाद शादी का वादा पूरा न करने पर बलात्कार का आरोप लगाया था।

न्यायालय ने कहा कि इतने लंबे समय तक चले संबंधों में परिपक्वता और समझदारी की उम्मीद की जाती है और केवल शादी न होने के आधार पर किसी पुरुष को बलात्कारी नहीं ठहराया जा सकता।

क्या था मामला?

पीड़िता ने दावा किया था कि आरोपी ने उससे शादी का वादा किया और इसी भरोसे के चलते उसने 16 साल तक उसके साथ सहमति से यौन संबंध बनाए। बाद में, जब पुरुष ने शादी से इनकार कर दिया, तो महिला ने उसके खिलाफ भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 376 (बलात्कार) और अन्य धाराओं के तहत मामला दर्ज करा दिया। महिला का आरोप था कि आरोपी शुरू से ही धोखेबाज था और उसने केवल शारीरिक संबंध बनाने के इरादे से उसे शादी का झांसा दिया। उसने अदालत से अपील की कि इस आधार पर आरोपी को सजा दी जाए।

सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि दो परिपक्व व्यक्तियों के बीच इतने लंबे समय तक चले संबंधों को आपराधिक कृत्य की तरह नहीं देखा जा सकता।

केवल शादी टूटने पर रेप नहीं माना जा सकता

कोर्ट ने कहा कि यदि किसी रिश्ते में महिला स्वतंत्र रूप से संबंध बनाती है और उसमें सहमति होती है, तो केवल शादी का वादा टूटने पर इसे बलात्कार नहीं माना जा सकता। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि बलात्कार के मामलों में ‘शादी का झूठा वादा’ केवल तभी लागू होता है, जब यह साबित हो कि शुरू से ही आरोपी की नीयत महिला को धोखा देने की थी। लेकिन यदि दोनों लंबे समय तक रिश्ते में रहे और पुरुष किसी वजह से शादी करने में असमर्थ हो गया, तो इसे आपराधिक मामला नहीं माना जा सकता।

अदालत के फैसले का कानूनी पक्ष सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला पिछले कुछ वर्षों में आए कई अन्य फैसलों से मेल खाता है, जिसमें यह साफ किया गया है कि “सहमति से बने संबंधों को बलात्कार नहीं कहा जा सकता, जब तक कि यह साबित न हो कि सहमति धोखे से ली गई थी।” हालांकि, अदालत ने यह भी कहा कि अगर यह सिद्ध हो जाए कि पुरुष ने शुरू से ही शादी की कोई मंशा नहीं रखी थी और केवल महिला को धोखा देने के लिए झूठा वादा किया था, तो इसे बलात्कार माना जा सकता है।

नजीर बनेगा कोर्ट का यह फैसला

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के दूरगामी प्रभाव हो सकते हैं। यह फैसला उन मामलों में नजीर बनेगा, जहां शादी का झूठा वादा करके यौन शोषण के आरोप लगाए जाते हैं। इस निर्णय से यह स्पष्ट हो गया कि यदि महिला खुद की मर्जी से लंबे समय तक संबंध में रही है, तो केवल शादी का वादा पूरा न होने पर बलात्कार का मामला नहीं बन सकता। हालांकि, अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि यदि किसी महिला को धोखा देकर, जबरन या गलत जानकारी देकर सहमति ली गई हो, तो मामला अलग होगा और उस स्थिति में कानून सख्त कार्रवाई करेगा।

 

 

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