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क्या थी भगत सिंह की अंतिम इच्छा, जो आज भी है अधूरी?

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भारत की आजादी के लिए 6,32,000 से अधिक क्रांतिवीरों ने शहादत दी। भगत सिंह, उनमें सर्वोच्च शिखर पर हैं, ऐसा पूरा देश उनको मानता है। शहीद-ए-आजम का खिताब उन्हें दिया गया है, ऐसा पूरे देश की तरफ से उनके लिए यह भावना है। 23 मार्च, 1931 को ब्रिटिश सरकार ने भगत सिंह, राजगुरू और सुखदेव को फांसी दे दी। लेकिन भगत सिंह की आखिरी इच्छा जो उन्होंने अपनी शहादत से पहले कही, उसमें इंडियन पुलिस एक्ट के बारे में उन्होंने गहरी चिंता व्यक्त की थी। वह चाहते थे कि जिस इंडियन पुलिस एक्ट के कारण लाला लाजपत राय की मौत हुई, जिस एक्ट के तहत वह खुद भी फांसी पर चढ़ने जा रहे हैं, वह कानून देश आजाद होने के बाद सबसे पहले खत्म हो। यह उनकी अंतिम इच्छा और युवाओं के लिए संदेश था। लेकिन इंडियन पुलिस एक्ट क्या था? क्यों इसे क्रूरतभरा कानून बताया गया और इसके पीछे की वजह क्या थी? आइए जानते हैं…

क्यों बनाया गया इंडियन पुलिस एक्ट?

ब्रिटिश सरकार को भारत में अपनी सत्ता बनाए रखने के लिए एक सशक्त और कुशल पुलिस व्यवस्था की आवश्यकता थी। 1857 के भारतीय विद्रोह के बाद ब्रिटिश अधिकारियों ने महसूस किया कि भारतीयों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने के लिए एक मजबूत और बिना किसी प्रकार के प्रतिबंध के पुलिस बल की आवश्यकता है। इसी जरूरत को पूरा करने के लिए भारतीय पुलिस अधिनियम (Indian Police Act) 1861 में पारित किया गया। इसके तहत भारतीय पुलिस को ब्रिटिश अधिकारियों के अधीन रखा गया और उन्हें उन अधिकारों से लैस किया गया जो भारतीय नागरिकों के लिए अत्यधिक तानाशाही और असंवेदनशील थे। यह अधिनियम भारतीय पुलिस को ब्रिटिश सरकार की नीतियों और आदेशों को लागू करने के लिए आवश्यक अधिकार देता था।

यह अधिनियम भारतीय नागरिकों के अधिकारों को सीमित करता था और पुलिस को किसी भी व्यक्ति को बिना कारण के गिरफ्तार करने और उसे प्रताड़ित करने का अधिकार देता था। यह अधिनियम भारतीय समाज में असंतोष और विद्रोह को बढ़ावा देने वाली परिस्थितियां पैदा करता था। भारतीय पुलिस को एक कठोर, अपारदर्शी, और दमनकारी तंत्र के रूप में स्थापित किया गया था, जो ब्रिटिश शासन के खिलाफ किसी भी आंदोलन या विरोध को कुचलने के लिए हर संभव कदम उठा सके।

साइमन कमीशन और लाला लाजपत राय की शहादत

1928 में ब्रिटिश सरकार ने भारतीय संविधान में सुधार के लिए साइमन कमीशन का गठन किया, लेकिन इस कमीशन में एक भी भारतीय सदस्य नहीं था। इस कदम से भारतीय जनता में गहरी नाराजगी फैल गई। भारतीय नेताओं ने इसे अपमानजनक और भारतीयों के खिलाफ एक और घिनौनी साजिश के रूप में देखा। लाला लाजपत राय, जो उस समय पंजाब के एक प्रमुख नेता थे, ने साइमन कमीशन के विरोध में व्यापक प्रदर्शन आयोजित किए।

जब ब्रिटिश पुलिस ने इन प्रदर्शनों को दबाने के लिए लाठीचार्ज किया, तो पुलिस अधिकारी जेम्स ए. स्कॉट ने लाला लाजपत राय को गंभीर रूप से घायल कर दिया। लाजपत राय की चोटों के कारण बाद में उनकी मृत्यु हो गई। यह घटना भारतीय समाज में एक बड़ा आक्रोश पैदा कर दी। लाला लाजपत राय की शहादत ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को और भी गहरी दिशा दी, और भगत सिंह जैसे युवा क्रांतिवीरों में गहरी ज्वाला को जन्म दिया।

लाला लाजपत राय की शहादत ने भगत सिंह के दिल में ब्रिटिश शासन के खिलाफ और भी अधिक क्रोध और आक्रोश पैदा किया। उन्होंने महसूस किया कि भारत की स्वतंत्रता के लिए सिर्फ राजनीतिक संघर्ष ही नहीं, बल्कि पूरी व्यवस्था को बदलने की आवश्यकता है। भारतीय पुलिस अधिनियम के तहत पुलिस जिस तरह से निर्दोष लोगों को सताती थी, उस पर भगत सिंह ने गहरी नाराजगी व्यक्त की। उनके लिए यह अधिनियम भारतीयों के खिलाफ उत्पीड़न और अन्याय का प्रतीक था। भगत सिंह का मानना था कि इस अधिनियम के खत्म होने तक भारत की स्वतंत्रता अधूरी रहेगी।

लाला लाजपत राय की मौत का बदला और भगत सिंह की गिरफ्तारी 

लाला लाजपत राय की मौत का प्रतिशोध लेने के लिए भगत सिंह और उनके साथियों ने पुलिस अधिकारी जेम्स ए. स्कॉट (जो लाला लाजपत राय पर लाठीचार्ज करने के जिम्मेदार थे) को मारने की योजना बनाई। हालांकि, स्कॉट की जगह पुलिस अधिकारी जॉन सांडर्स को मार दिया गया। इस घटना के बाद भगत सिंह और उनके साथियों ने संसद में बैठे भारतीय जनता के बीच पर्चा लहराकर यह संदेश दिया कि वे ब्रिटिश शासन को हर तरीके से चुनौती देंगे, चाहे वह सशस्त्र क्रांति के रूप में हो या फिर शांति के रास्ते पर। और इसी दौरान उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया।

भगत सिंह की फांसी और उनका आखिरी संदेश 

भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को 23 मार्च 1931 को फांसी दी गई। इससे पहले, भगत सिंह ने अपनी आखिरी इच्छा जाहिर की थी। उन्होंने कहा था कि उनका सपना था कि भारतीय पुलिस अधिनियम को समाप्त किया जाए, जो ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ संघर्ष कर रहे हर भारतीय के लिए एक अवरोध था। वह चाहते थे कि उनके जैसे युवा भारतीय इस अधिनियम के खिलाफ संघर्ष करें और इसे खत्म करने के लिए हर संभव प्रयास करे। इन्हीं ब्रिटिश कानूनों की वजह से लाला लाजपत राय की मौत और तीनों क्रांतिवीरों फांसी पर चढ़ गये, जिससे भारतीय जनमानस में देश की आजादी को लेकर एक अलग ही सैलाब उमड़ पड़ा।

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