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फास्टैग से लेकर जीपीएस ट्रैकिंग तक; क्या सर्विलांस स्टेट की ओर बढ़ रहा है देश?

जीपीएस ट्रैकिंग सिस्टम सर्विलांस स्टेट
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फास्टैग, जिसे पहले लोगों के सामने एक सुविधा के रूप में प्रस्तुत किया गया था। एक ऐसे साधन के रूप में जो लोगों को टोल बूथों पर लगने वाली लंबी कतारों से छुटकारा दिलाएगा और भुगतान को डिजिटल बनाएगा। परंतु अब जिस दिशा में यह प्रणाली जा रही है, उससे कई गंभीर प्रश्न खड़े हो रहे हैं। क्या यह महज तकनीकी उन्नति है, या फिर यह एक सुनियोजित प्रयास है देश को एक सर्विलांस स्टेट में तब्दील करने का…।

1 मई से पूरे देश में हाईवे से फास्टैग को रिप्लेस कर दिया जाएगा। इसकी जगह नया जीपीएस(GPS) ट्रैकिंग सिस्टम लेगा। साल 2016 में फास्टैग के आने के बाद चालकों को टोल प्लाजा पर लंबी कतारों से छुटकारा तो मिल गया, लेकिन फिर भी कई जगहों पर जाम की समस्या लगी रहती है। सरकार का तर्क है कि फास्टैग स्कैनिंग में समय लगने के कारण ये स्थिति बन जाती है। अब जीपीएस ट्रैकिंग सिस्टम के बाद से ये झंझट खत्म हो जाएगा और वाहन बिना किसी रुकावट के आवाजाही कर सकेंगे। कुछ चुनिंदा टोल प्लाजा पर एएनपीआर-फास्टैग आधारित बिना बैरियर वाला टोल सिस्टम लागू किया जाएगा। यह सिस्टम ऑटोमैटिक नंबर प्लेट रिकॉग्निशन’ तकनीक, जो वाहन की नंबर प्लेट को पहचान करती है, और फास्टैग सिस्टम, जो रेडियो फ्रीक्वेंसी आइडेंटिफिकेशन (RFID) पर आधारित है, दोनों का मिश्रण होगा‌।

जीपीएस ट्रैकिंग सिस्टम से कटेगा टोल टैक्स

जीपीएस ट्रैकिंग सिस्टम में सीधे आपके बैंक अकाउंट से टोल टैक्स कट जाएगा। इसमें आपकी गाड़ी में एक ऑन-बोर्ड यूनिट लगाई जाएगी। यह यूनिट जीपीएस की मदद से आपकी वाहन को ट्रैक करेगी कि आपने हाईवे पर कितनी दूरी तय की है। जीपीएस ट्रैकिंग सिस्टम में आप जितनी दूरी तय करेंगे उसी हिसाब से आपका टोल टैक्स कटेगा। इसे जमा करने के लिए अब स्कैनिंग बगैरह करने और कहीं भी अब आपको रुकने की जरूरत नहीं होगी।

नये टोल टैक्स सिस्टम में आप जितनी दूरी तय करेंगे। उतना ही टैक्स कट जाएगा। अब ऐसा नहीं होगा कि आपने हाईवे क्रोस किया और आपको पूरा टोल टैक्स देना होगा। नये सिस्टम में यह एक बदलाव किया गया है। अब इस बदलाव पर सरकार का यह तर्क है कि इससे वाहन चालकों को सुविधा होगी और जाम से मुक्ति मिलेगी, कार्बन उत्सर्जन में कमी आएगी, जिससे प्रदूषण कम करने में मदद मिलेगी। नए सिस्टम से टोल प्लाजा की जरूरत नहीं होगी। हाईवे, एक्सप्रेसवे पर लगे कैमरे से टोल ऑटोमैटिक कट जाएगा। इस सिस्टम को फेज वाइज लागू किया जाएगा।

हर मूवमेंट पर रखी जाएगी नजर

जब फास्टैग को लाया गया था, तो इसे सुविधा, पारदर्शिता और समय की बचत के रूप में प्रचारित किया गया। लेकिन अब यह स्पष्ट होता जा रहा है कि यह एक बड़ा प्रयोग था- जनता को ट्रैकिंग सिस्टम के प्रति अभ्यस्त कराने का। फास्टैग से सरकार को यह अंदाजा मिला कि जनता किस सीमा तक अपने निजी डेटा को साझा करने के लिए तैयार है। अब जब जनता तकनीकी निगरानी को ‘नॉर्मल’ मान चुकी है, तब सरकार अगला कदम उठाने जा रही है-जीपीएस ट्रैकिंग का।

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सरकार अब प्रत्येक वाहन में अनिवार्य रूप से जीपीएस टैगिंग करने जा रही है। इसका अर्थ है कि किसी भी नागरिक की हर यात्रा, हर मूवमेंट, हर स्टॉप की लोकेशन सरकार के पास रियल-टाइम में उपलब्ध होगी। भले ही इसे कार्यक्षमता बढ़ाने या टोल वसूली में पारदर्शिता लाने के नाम पर पेश किया जाए, पर सच्चाई यह है कि यह सिस्टम नागरिकों की गतिविधियों पर निगरानी रखने का सबसे प्रभावशाली तरीका बन जाएगा।

तकनीक के बहाने निजता का अंत

भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में, निजता को मौलिक अधिकार माना जाता है। परंतु लगातार बढ़ रही डिजिटल निगरानी ने इस अधिकार को कहीं न कहीं कमजोर करने के काम करेग। सरकार पहले लोगों की सुविधा के लिए आधार, सीसीटीवी, सोशल मीडिया ट्रैकिंग, फेशियल रिकग्निशन तकनीक और अब जीपीएस ट्रैकिंग लग रही है। इन सभी प्रणालियों का एकमात्र उद्देश्य है नागरिकों पर नियंत्रण स्थापित करना।

इस पर सरकार तर्क देती है कि यह सब ‘राष्ट्रीय सुरक्षा’ और ‘सुविधा’ के लिए किया जा रहा है। लेकिन सवाल यह है कि क्या सुरक्षा की आड़ में जनता की स्वतंत्रता को कुचलना उचित है? हमारी स्वतंत्रता फिर कहां गई, क्या हमें केवल इसलिए अपनी लोकेशन, यात्रा और गतिविधियों की जानकारी सरकार को सौंप देनी चाहिए क्योंकि यह सबकुछ हमारी सुविधा के लिए की जा रही है? क्या यह सुविधा का आवरण वास्तव में आज़ादी की बलि नहीं है?

सुविधा से सर्विलांस की यात्रा

फास्टैग से शुरू हुआ यह सफर अब उस मोड़ पर पहुंच गया है जहाँ हर नागरिक पर डिजिटल रूप से नजर रखने की व्यवस्था तैयार हो रही है। यह एक गंभीर चेतावनी है, जरूरत इस बात की है कि इस पूरी प्रणाली में पारदर्शिता लाई जाए। नागरिकों को यह अधिकार मिलना चाहिए कि वे जान सकें कि उनका डेटा कहां और किस उद्देश्य से उपयोग किया जा रहा है। डेटा संरक्षण कानून को सख्ती से लागू किया जाए और जीपीएस निगरानी केवल उन मामलों तक सीमित रखी जाए जो वास्तव में राष्ट्रीय सुरक्षा या आपराधिक मामलों से जुड़ी हों। अगर हमने अभी नहीं चेता, तो वह दिन दूर नहीं जब भारत एक सर्विलांस स्टेट बन जाएगा, जहाँ ‘स्वतंत्रता’ केवल संविधान की किताबों तक सीमित रह जाएगी।

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