आज हममें से अधिकांश लोग रोज़ाना 8 घंटे काम करते हैं और फिर बाकी समय खुदको और परिवार को देते हैं। यह नियम अब सामान्य लगता है, लेकिन एक दौर ऐसा भी था जब मजदूरों से दिन के 12 से 14 घंटे, यहां तक कि कुछ-कुछ कल-कारखानों और फैक्ट्रियों में 18-18 घंटे तक काम लिया जाता था, वो भी बेहद कम वेतन और बिना किसी छुट्टी के। 1 मई का दिन, जिसे आज दुनिया भर के देशों में अंतरराष्ट्रीय मज़दूर दिवस या ‘मई डे’ के नाम से भी जाना जाता है। वह इसी अमानवीय श्रम व्यवस्था के खिलाफ उठी आवाज़ों और संघर्षों की देन है। इस दिन का इतिहास सिर्फ़ एक दिन की छुट्टी नहीं, बल्कि हज़ारों श्रमिकों की कुर्बानियों की याद है, जिसने ‘8 घंटे कार्य, 8 घंटे आराम और 8 घंटे व्यक्तिगत जीवन’ का सिद्धांत दुनिया को दिया।
8 घंटे काम की मांग पर बम, गोली और फांसी
19वीं सदी के अंत में औद्योगिक क्रांति के बाद दुनिया के कई देशों में बड़ी संख्या में मजदूर फैक्ट्रियों में काम करने लगे। मुनाफे की अंधी दौड़ में मालिक मजदूरों से दिन के 12 से 18 घंटे तक काम करवाते थे। एक तो जहां वेतन बहुत कम मिलता था, वहीं काम की जगहें असुरक्षित थीं और छुट्टियों का कोई प्रावधान नहीं था। इसे लेकर अमेरिका के श्रमिकों ने इस अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठाई।
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1 मई 1886 को अमेरिका के शिकागो शहर में हज़ारों मजदूर सड़कों पर उतरे। उनकी मांग थी कि “8 घंटे काम, 8 घंटे आराम, और 8 घंटे निजी जीवन के लिए।” यह शांतिपूर्ण प्रदर्शन 3 मई को हिंसक हो गया जब पुलिस फायरिंग में 4 मजदूर मारे गए। इसके विरोध में 4 मई को हेमार्केट शिकागो में स्क्वायर पर फिर प्रदर्शन हुआ जहां अज्ञात व्यक्ति ने पुलिस पर बम फेंका। इसके बाद पुलिस ने कई मजदूर नेताओं को गिरफ्तार किया और चार को फांसी दे दी। इन चारों मजदूरों की फांसी ने पूरी दुनिया को झकझोर दिया और श्रमिक आंदोलन की आग अंतरराष्ट्रीय स्तर तक पहुंच गई।
पहली बार ILO ने मजदूर दिवस मनाया
हेमार्केट आंदोलन के बाद अंतरराष्ट्रीय मजदूर संगठनों (ILO) ने 1889 में पेरिस में एक सम्मेलन आयोजित किया। इसमें तय हुआ कि हर साल 1 मई को उन मजदूरों के सम्मान में ‘मज़दूर दिवस’ के रूप में मनाया जाएगा। ILO सम्मेलन में बात हुई कि जिन्होंने 8 घंटे काम की मांग को लेकर बलिदान दिया। अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन जिसकी स्थापना 1919 में हुई, ने भी ‘8 घंटे कार्य के घंटे’ को मान्यता दी। इसके बाद भारत ने भी समय के साथ श्रम कानूनों में बदलाव किए जैसे कि फैक्ट्री अधिनियम 1948, श्रमिक कल्याण को लेकर विभिन्न राज्य में कानून बने। हाल ही में 2020 में लाए गए नए चार श्रम संहिताओं में काम के घंटे, अवकाश और सुरक्षा से जुड़े प्रावधान इसमें शामिल किए गए हैं।
भारत में मजदूर दिवस कब और कैसे शुरू हुआ?
भारत में पहली बार मजदूर दिवस 1 मई 1923 को चेन्नई (तब मद्रास) में मनाया गया था। इसे कामगार नेता सिंगरवेलु चेटियार ने आयोजित किया था। उन्होंने ‘मज़दूर किसान पार्टी ऑफ़ हिन्दुस्तान’ के माध्यम से इस दिवस को भारत में लोकप्रिय बनाया। धीरे-धीरे यह आंदोलन पूरे देश में फैला और 8 घंटे की काम की प्रणाली सरकारी और निजी दोनों क्षेत्रों में लागू की गई।
हालांकि, आज कई क्षेत्रों में 8 घंटे की कार्यप्रणाली लागू है, फिर भी कई अनौपचारिक और निजी क्षेत्र के कर्मचारियों को ओवरटाइम, वेतन कटौती, और कार्य दबाव का सामना करना पड़ता है। गिग इकॉनॉमी और फ्रीलांस काम के बढ़ते ट्रेंड ने ‘समय की निश्चितता’ को और भी चुनौती दी है।
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