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16 दिन, 23 जिले, 1300 किमी: वोटर अधिकार यात्रा से खोई जमीन तलाशती कांग्रेस

Voter Adhikar Yatra Roadmapp
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बिहार की सियासी सरगर्मी इन दिनों राहुल गांधी की ‘वोटर अधिकार यात्रा’ को लेकर तेज हो गई है। 17 अगस्त से एसपी जैन कालेज, सासाराम से शुरू हुई यह वोटर अधिकार यात्रा 16 दिन में 23 जिलों से गुजरते हुए लगभग 1300 किलोमीटर का सफर तय करेगी और 1 सितंबर को पटना में यात्रा समाप्त होगी। महागठबंधन इस यात्रा को सिर्फ सड़क पर जनता से जुड़ने का माध्यम नहीं बता रही, बल्कि वोट चोरी को लोकतंत्र में मतदाता अधिकारों की रक्षा का अभियान कह रही है। राहुल के साथ प्रियंका गांधी, तेजस्वी यादव, पप्पू यादव और इंडिया गठबंधन के कई बड़े नेता कदम से कदम मिलाकर चल रहे हैं। इस यात्रा से स्पष्ट है कि विपक्ष इस यात्रा को बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से पहले जनता से सीधे जुड़ने और अपना संदेश पहुंचाने का हथियार बना रहा है।

बिहारः वोटर अधिकार यात्रा रोडमैप
बिहारः वोटर अधिकार यात्रा रोडमैप

लेकिन सवाल यही है कि कांग्रेस इस यात्रा से क्या हासिल करना चाहती है? बात करें यदि 2020 के विधानसभा चुनाव की तो कांग्रेस ने महागठबंधन के हिस्से के रूप में 70 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे, मगर जीत मिली केवल 19 सीटों पर। यानी बिहार में कांग्रेस का जनाधार पूरी तरह से सिकुड़ चुका था। वर्तमान में कांग्रेस के सिर्फ 8 विधायक हैं। यही वजह है कि इस बार राहुल गांधी ने वोट चोरी को मुद्दा बनाते हुए उन 50 सीटों पर फोकस किया है, जहां पार्टी की पकड़ बेहद कमजोर है या बिल्कुल खत्म हो चुकी है। महागठबंधन की यह यात्रा उन 50 सीटों पर ही केंद्रित है। दिलचस्प है कि पिछली बार इन्हीं सीटों में से महागठबंधन को 22 और एनडीए को 28 सीटें मिली थीं। इससे साफ है कि कांग्रेस की नज़र इन क्षेत्रों पर खासकर वोट चोरी के मुद्दे से जुड़ना चाहेगी।

यात्राओं से बढ़ा कांग्रेस का सियासी आत्मविश्वास

कांग्रेस का भरोसा इस बात पर भी टिका है कि यात्राएं उसके लिए बेहद ही असरदार साबित होती रही हैं। भारत जोड़ो यात्रा के दौरान राहुल गांधी जब सीमांचल के जिलों- अररिया, किशनगंज, कटिहार और पूर्णिया से गुज़रे थे, तो उन यात्राओं का असर लोकसभा चुनाव 2024 में स्पष्ट तौर पर दिखा। कांग्रेस ने 2019 के लोकसभा चुनाव के मुक़ाबले बेहतर प्रदर्शन किया और इस बार उसके पास बिहार से एक से बढ़कर तीन सांसद कटिहार, किशनगंज और सासाराम से हो गए। अपनी यात्रा की इस सफलता से उत्साहित होकर अब राहुल गांधी एक बार फिर वोट चोरी के मुद्दे को लेकर बिहार की सड़क पर उतरे हैं।

राहुल गांधी और तेजस्वी यादव वोटर अधिकार यात्रा रैली में
राहुल गांधी और तेजस्वी यादव वोटर अधिकार यात्रा रैली

बात करें यदि इन यात्राओं की तो भारत जोड़ो यात्रा के बाद कांग्रेस पार्टी का वोट शेयर बिहार में 1.35 फ़ीसदी बढ़ा और अब कुल 9.20 फ़ीसदी तक पहुंच गया। भले ही यह वोटिंग परसेंटेज आपको बहुत बड़ा इज़ाफा न लगे, लेकिन बिहार जैसे जातीय और गठबंधन-आधारित राजनीति वाले राज्य में यह छोटा बदलाव भी सीटों का गणित बदल सकता है। राहुल गांधी को इस यात्रा से पार्टी को उम्मीद है कि जिन इलाकों में कांग्रेस का वोट बैंक लगातार खिसक रहा था, वहां अब जनता को फिर से जोड़ा जा सकेगा।

किन इलाकों पर फोकस ?

‘वोटर अधिकार यात्रा’ खास तौर पर उन इलाकों से गुजर रही है जहां कांग्रेस का संगठन कमजोर है और जहां बीजेपी-जेडीयू गठबंधन का दबदबा है। यात्रा सासाराम, कैमूर, आरा, बक्सर से शुरू होकर उत्तर बिहार के दरभंगा, मधुबनी, सुपौल, अररिया, किशनगंज, कटिहार तक जाएगी। इसके अलावा यात्रा गया, नवादा, जहानाबाद, नालंदा, सीतामढ़ी, शिवहर, मुजफ्फरपुर जैसे जिलों से होते हुए पटना पहुंचेगी। इनमें से अधिकांश इलाके ऐसे हैं जहां 2020 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस लगभग सिमट चुकी थी।

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उदाहरण के लिए-

सीमांचल (पूर्णिया, कटिहार, अररिया, किशनगंज): कांग्रेस की सबसे बड़ी चिंता सीमांचल है। मुस्लिम बहुल इन जिलों में कांग्रेस का पारंपरिक वोट बैंक रहा है। लेकिन 2020 के विधानसभा चुनाव में ओवैसी की पार्टी AIMIM ने पांच सीटें जीतकर कांग्रेस को करारा झटका दिया। हालांकि बाद में चार विधायक राजद में चले गए, लेकिन यह संकेत साफ था कि मुस्लिम वोट अब बंट रहा है। राहुल गांधी की इस यात्रा का बड़ा मकसद इसी बिखराव को रोकना और मुस्लिम-युवाओं के साथ-साथ दलित-ओबीसी वर्ग को भी फिर से जोड़ना है। यहाँ कांग्रेस की सबसे बड़ी चुनौती AIMIM और एनडीए दोनों से है।

मध्य बिहार (सासाराम, गया, नालंदा, जहानाबाद): यहाँ कांग्रेस की पकड़ कमजोर है। दलित और अति पिछड़ा वर्ग जदयू-भाजपा की ओर झुका रहा है। राहुल गांधी का संदेश इन वर्गों तक पहुँचाने की कोशिश है।

उत्तर बिहार (दरभंगा, मधुबनी, समस्तीपुर, सुपौल, सहरसा): यह क्षेत्र सामाजिक न्याय की राजनीति से प्रभावित है। कांग्रेस यहाँ राजद के साथ मिलकर महागठबंधन की एकता दिखाना चाहती है।

सीमांचल: कांग्रेस-लालू का गढ़, जहां बीजेपी ने दी सेंध

बिहार की राजनीति में हर चुनाव के वक्त सीमांचल का ज़िक्र जरूर होता है। यह इलाका लंबे समय तक लालू यादव और कांग्रेस का मज़बूत गढ़ माना जाता रहा है। मगर 2020 के विधानसभा चुनाव ने यह तस्वीर बिल्कुल बदल दी। मुस्लिम बहुल इस क्षेत्र में चार जिले आते हैं- किशनगंज, अररिया, कटिहार और पूर्णिया। यहां कुल 24 विधानसभा सीटें हैं। जाति-जनगणना के आंकड़े बताते हैं कि बिहार की कुल आबादी में करीब 18 फ़ीसदी मुस्लिम हैं, जबकि सीमांचल में उनका अनुपात कहीं ज्यादा है। किशनगंज में मुस्लिम आबादी 68 फ़ीसदी, अररिया में 43 फ़ीसदी, कटिहार में 45 फ़ीसदी और पूर्णिया में 39 फ़ीसदी है।

इतने बड़े सामाजिक समीकरण के बावजूद 2020 के चुनाव में बीजेपी ने अप्रत्याशित प्रदर्शन किया और वह 24 में से आठ सीटें जीतकर सीमांचल की सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। कांग्रेस को पांच, जेडीयू को चार, सीपीआई (एमएल) और आरजेडी को एक-एक सीटें मिलीं।

सीमांचल जैसे इलाकों में मुस्लिम वोटों पर उसकी पारंपरिक पकड़ AIMIM जैसी पार्टियों ने कमजोर की है। क्योंकि कांग्रेस के सारे मुस्लिम मतदाता AIMIM की ओर गए या फिर एनडीए में और कांग्रेस पार्टी सीमांचल जैसे मुस्लिम क्षेत्रों में भी कमजोर होती गई। राहुल गांधी की इस वोटर अधिकार यात्रा के बाद भाजपा और जदयू ने 243 विधानसभा सीटों पर बड़े पैमाने पर सम्मेलन और रैलियां करने की योजना बनाई है। इन सम्मेलनों का मकसद लोगों को एनडीए सरकार की उपलब्धियों के बारे में बताना और विपक्ष के दावों का जवाब देना है। यह अभियान 23 अगस्त को शुरू हुआ और यह 14 सितंबर तक चलेगा।

इस चुनावी अभियान के तहत एनडीए के नेता हर विधानसभा क्षेत्र में जाएंगे और लोगों से मिलेंगे। बीजेपी इसके जरिए लोगों को यह बताना चाहती है कि बिहार में कैसे विकास हो रहा है और सरकार की योजनाएं कैसे लोगों को फायदा पहुंचा रही हैं। भाजपा लगातार राहुल गांधी के वोट चोरी के मुद्दे और अन्य सभी आरोपों को झूठा बताते हुए इसे सिर्फ राजनीतिक नौटंकी करार दे रही है।

वोट चोरी और मतदाता सूची की गड़बड़ी बना बड़ा मुद्दा

इसके बावजूद, इस यात्रा ने बिहार के चुनावी समर का तापमान बढ़ा दिया है। राहुल गांधी लगातार ‘वोट चोरी’ के मुद्दे को उठाकर चुनाव आयोग और सरकार पर दबाव बना रहे हैं। उनका कहना है कि मतदाता सूची में बड़े पैमाने पर गड़बड़ी की गई है और वह इसका सबूत भी पेश करेंगे। बिहार में सबसे अधिक मतदाता का नाम पटना, पूर्वी चंपारण, गोपालगंज, मुजफ्फरपुर और सारण के बाद सबसे अधिक सीमांचल के क्षेत्रों में कटी है। साथ ही, मतदाता पुनरीक्षण की गड़बड़ी ने जीवित मतदाता को मृत बनाया है। हालांकि, यह मुद्दा आम लोगों के बीच कितना असर करता है, यह तो आने वाला समय ही बताएगा।

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नतीजा चाहे जो हो, ‘वोटर अधिकार यात्रा’ ने कांग्रेस को चर्चा में ला दिया है। पार्टी अब सिर्फ सहयोगी दल के सहारे नहीं, बल्कि खुद को एक प्रासंगिक ताकत के रूप में पेश करने की कोशिश कर रही है। अगर यह यात्रा मतदाताओं के बीच विश्वास जगाने में सफल रही, तो कांग्रेस न सिर्फ अपने वोट प्रतिशत में सुधार कर सकती है बल्कि सीटों की संख्या में भी बढ़ोतरी की संभावना बना सकती है। और यही इस पूरे अभियान की असली कसौटी होगी।

क्या सिर्फ यात्रा से बनेगी बात

हालांकि, बड़ा सवाल यह भी है कि क्या सिर्फ ‘वोटर अधिकार यात्रा’ से कांग्रेस जनता को अपने पक्ष में कर पाएगी? क्योंकि मुद्दा यही है कि अगर इस यात्रा से जनता को अपने पक्ष में किया जा सकता है तो यह बड़ा बदलाव ला सकती है। अगर बिहार की राजनीति सिर्फ प्रतीक और नारों से नहीं, बल्कि ज़मीनी मुद्दों से भी तय होती है। बेरोजगारी, शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाएँ, लगातार पलायन और अपराध जैसे मुद्दे आज भी बिहार की सबसे बड़ी चुनौतियाँ हैं। अगर कांग्रेस सिर्फ मतदाता सूची में गड़बड़ी या ‘वोट चोरी’ जैसे मुद्दों पर टिके रही, तो इसका असर सीमित रह सकता है। कांग्रेस को अपनी यात्रा के साथ-साथ जनता के असली मुद्दों पर सरकार को घेरना होगा— जैसे शिक्षा और स्वास्थ्य का ढांचा, रोज़गार के अवसर, पलायन की मार और कानून-व्यवस्था की विफलताएँ।

यात्रा के दौरान राहुल और प्रियंका की जोड़ी भी खास संदेश दे रही है। प्रियंका गांधी जब सुपौल और मधुबनी में यात्रा से जुड़ीं और जानकी मंदिर में पूजा-अर्चना की, तो इसे कांग्रेस के ‘सॉफ्ट हिंदुत्व’ और सांस्कृतिक जुड़ाव के तौर पर देखा गया। उधर तेजस्वी यादव राहुल के साथ बाइक पर चलते नज़र आए, जिससे महागठबंधन में युवा नेतृत्व की तस्वीर उभरकर सामने आई। INDIA गठबंधन के दूसरे नेता भी इस यात्रा में शरीक होकर विपक्षी एकजुटता का प्रदर्शन कर रहे हैं।

वोटर अधिकार यात्रा में राहुल गांधी व उनकी बहन प्रियंका गांधी
वोटर अधिकार यात्रा में राहुल गांधी व उनकी बहन प्रियंका गांधी

इस यात्रा ने पार्टी को फिर से चर्चा में ला दिया है, लेकिन वास्तविक कसौटी यही होगी कि क्या कांग्रेस इस यात्रा को चुनावी समर्थन में बदल पाती है या नहीं। सीमांचल में AIMIM की सेंधमारी, एनडीए की आक्रामक तैयारी और जनता के असली मुद्दे। ये सभी कारक तय करेंगे कि राहुल गांधी की यह लंबी यात्रा कांग्रेस को कितना आगे ले जा पाती है।

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