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बिहार की राजनीतिक तस्वीर: कितने जिले, कितनी विधानसभा और क्या है समीकरण?

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बिहार भारत की राजनीति का एक ऐसा केंद्र है, जहाँ चुनावी मुकाबले सिर्फ सीटों की लड़ाई नहीं, बल्कि सामाजिक समीकरणों और गठबंधनों का खेल होते हैं। 2025 में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले यह जानना जरूरी है कि बिहार का राजनीतिक ढांचा कैसा है? इस लेख में जानिए बिहार में कितने जिले हैं, कितनी विधानसभा सीटें हैं और किस तरह के समीकरण यहां का चुनावी माहौल तय करते हैं।

88 फीसदी जनता गांवों में रहती है

बिहार देश का 13वां सबसे बड़ा राज्य (क्षेत्रफल) है, लेकिन यहां देश का तीसरा सबसे बड़ी आबादी रहती है। जिलों के आधार पर देखें तो इसे 38 जिलों में बाटा गया है। ये जिले 9 प्रमंडलों में विभाजित हैं—जैसे तिरहुत, मगध, मिथिलांचल, कोसी, भोजपुर आदि।

राज्य की कुल आबादी लगभग 13 करोड़ (2023 के अनुमान के अनुसार) है। बिहार की 88% आबादी ग्रामीण इलाकों में रहती है, जिससे यह चुनावी रणनीतियों में गांव-केंद्रित राजनीति को बेहद अहम बनाता है।

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विधानसभा और लोकसभा सीटों का समीकरण


बिहार विधानसभा में कुल 243 सीटें हैं। इनमें से 38 सीटें अनुसूचित जाति (SC) और 2 सीटें अनुसूचित जनजाति (ST) के लिए आरक्षित हैं। विधान परिषद (MLC) की 75 सीटें भी यहां मौजूद हैं, जो अप्रत्यक्ष चुनावों से चुनी जाती हैं।


लोकसभा की बात करें तो बिहार में 40 लोकसभा सीटें हैं, जो उत्तर प्रदेश के बाद सबसे ज्यादा हैं। यही कारण है कि केंद्र की राजनीति में बिहार का हमेशा से दबदबा रहा है। राज्यसभा की बात करें तो बिहार से 16 सदस्य चुने जाते हैं।

अब एक नजर राजनीतिक समीकरण पर


बिहार की राजनीति में जातीय समीकरण सबसे अहम भूमिका निभाते हैं। यादव, कुर्मी, ब्राह्मण, दलित और मुस्लिम मतदाता चुनावी तस्वीर तय करते हैं।
मुख्य पार्टियों में राष्ट्रीय जनता दल (RJD), जनता दल यूनाइटेड (JDU), भारतीय जनता पार्टी (BJP), कांग्रेस और वामपंथी दल शामिल हैं।

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बिहार में गठबंधन की राजनीति की पुरानी परंपरा है। कोई भी पार्टी अकेले सत्ता में नहीं आती। 2015 में महागठबंधन (RJD-JDU-Congress) ने ऐतिहासिक जीत दर्ज की, जबकि 2020 में एनडीए (BJP-JDU) ने सत्ता पाई।


इन समीकरणों में हर बार बदलाव आता है—कभी लव-कुश समीकरण (लालू + कुर्मी) तो कभी मोदी फैक्टर। 2025 का चुनाव भी इन्हीं गठबंधनों और जातीय गणित पर टिका होगा।

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