साल था 1977। देश आपातकाल के दौर से बाहर निकल चुका था। आपातकाल के बाद लोकसभा का चुनाव हुआ, जिसमें कांग्रेस को करारी हार मिली और केंद्र की सत्ता की कमान पहली बार किसी गैर कांग्रेसी (जनता पार्टी) के हाथों में चली गई। मोरारजी देसाई देश के पहले गैर-कांग्रेसी प्रधानमंत्री बने। केंद्र की सत्ता संभालते ही उन्होंने बड़ा कदम उठाया- सबसे पहले उन्होंने 9 राज्यों की विधानसभा भंग कर दीं, जिनमें बिहार भी शामिल था। मोरारजी देसाई के इसी फैसले के बाद जून 1977 में बिहार में विधानसभा चुनाव कराए गए।
इन चुनावों में कई हाई-प्रोफाइल सीटें चर्चा में रहीं, लेकिन सबसे ज्यादा सुर्खियाँ बटोरीं जमुई विधानसभा सीट ने। वजह थी- इस छोटे से इलाके में चुनाव प्रचार करने पहुंचे दो-दो प्रधानमंत्रियों का आमना-सामना।
जमुई सीट से जनता पार्टी ने त्रिपुरारी सिंह को उम्मीदवार बनाया, जबकि कांग्रेस की ओर से पंचानन सिंह चुनावी मैदान में उतरे थे।देखने में यह एक सामान्य मुकाबला था, लेकिन जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आया और प्रचार शुरू हुआ, यह सीट राष्ट्रीय सुर्खियों में आने लगी। वो दौर जब किसी विधानसभा प्रत्याशी के लिए प्रधानमंत्री का आना दुर्लभ घटना मानी जाती थी। लेकिन त्रिपुरारी सिंह की दिल्ली तक मजबूत पकड़ और समाजवादी नेताओं से निकटता के कारण यह असंभव संभव हुआ और प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई ने खुद उनके समर्थन में जमुई आने का निर्णय लिया।
बिठलपुर एयरस्ट्रिप पर उतरे मोरारजी देसाई
पहली बार किसी छोटे शहर ने ऐसा नज़ारा देखा और दिल्ली से विशेष सेवन-सीटर चार्टर प्लेन में रवाना होकर प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई बिठलपुर एयरस्ट्रिप पर उतरे। यह जमुई के इतिहास का पहला मौका था जब कोई प्रधानमंत्री इस इलाके में आया था और वह भी एक प्रत्याशी के चुनाव प्रचार में। मोरारजी वहां से सड़क मार्ग से महाराजगंज के गांधी पार्क पहुंचे, जहां जनसभा पहले से ही जनसैलाब में बदल चुकी थी।
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हेलीकॉप्टर से केकेएम कालेज स्टेडियम पहुंचीं इंदिरा गांधी
प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई के जमुई दौरे और लोकसभा चुनाव में हार के बाद कांग्रेस ने भी अपनी पूरी ताकत झोंक दी। कांग्रेस प्रत्याशी पंचानन सिंह के प्रचार के लिए पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी खुद हेलीकॉप्टर से जमुई पहुंचीं। उनका विमान केकेएम कॉलेज ग्राउंड में उतरा। स्टेडियम पहुंचने के बाद इंदिरा गांधी ने अपने संबोधन में कहा कि “देश को स्थिरता और अनुभव की ज़रूरत है, प्रयोगों की नहीं।” इंदिरा के आने के बाद कांग्रेस कार्यकर्ताओं में जोश तो भरा लेकिन चुनाव के अंतिम मुकाबले तक आते-आते हवा जनता पार्टी की ओर झुक चुकी थी।
जब त्रिपुरारी के प्रचार में सारे दिग्गज नेता उतरे
त्रिपुरारी सिंह के समर्थन में जनता पार्टी ने अपने तमाम दिग्गज मैदान में उतार दिए। चंद्रशेखर, कर्पूरी ठाकुर, रामकृष्ण हेगड़े और आचार्य जे.बी. कृपलानी जैसे वरिष्ठ नेताओं ने जमुई में जनसभाएं कीं। इससे चुनाव प्रचार ने जोर पकड़ लिया और यह सीट राष्ट्रीय राजनीति का केंद्र बन गई। यह लड़ाई अब सिर्फ दो उम्मीदवारों की नहीं रही, बल्कि जनता पार्टी की समाजवादी विचारधारा बनाम कांग्रेस की परंपरागत राजनीति की लड़ाई में बदल गई थी।
27000 वोटों से जीते त्रिपुरारी सिंह
जब चुनाव के नतीजे सामने आए तो परिणाम ने सबको चौंका दिया। जनता पार्टी के त्रिपुरारी सिंह ने 45,943 वोट हासिल किए, जबकि कांग्रेस प्रत्याशी पंचानन सिंह को मात्र 18,789 वोट मिले। करीब 27,000 वोटों के बड़े अंतर से त्रिपुरारी सिंह विजयी रहे। इंदिरा गांधी का प्रचार भी इस हार को रोक नहीं सका।
बिहार की 324 सीटों में से जनता पार्टी ने 214 सीटों पर कब्जा जमाया। कांग्रेस 57 सीटों तक सिमट गई और कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (CPI) को 21 सीटें मिलीं। जनता पार्टी की सरकार बनी और कर्पूरी ठाकुर राज्य के नए मुख्यमंत्री बने। मुख्यमंत्री पद के लिए हुए अंदरूनी चुनाव में कर्पूरी ठाकुर को 144 वोट, जबकि सत्येंद्र नारायण सिन्हा को 84 वोट मिले। जमुई से जीते त्रिपुरारी सिंह को उनकी जीत का इनाम भी मिला और उन्हें बिहार विधानसभा का अध्यक्ष बनाया गया।
1977 में बिहार विधानसभा में जमुई सीट का यह चुनाव बिहार ही नहीं, बल्कि पूरे देश का ध्यान अपनी ओर खींचा। जहां आमतौर पर राष्ट्रीय नेता दूर रहते थे, वहां प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई और पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी एक सीट के लिए आमने-सामने दिखे। यह चुनाव सिर्फ एक सीट का नहीं था- यह था उस दौर का प्रतीक, जब जनता ने आपातकाल के बाद पहली बार सत्ता के समीकरण खुद तय किए थे।
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