बिहार की राजनीति में इस बार एक नया नाम सुर्खियों में है- दिव्या गौतम का। मशहूर अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की ममेरी बहन दिव्या अब चुनावी मैदान में उतरने जा रही हैं। सीपीआई(एमएल) ने उन्हें पटना जिले की दीघा विधानसभा सीट से उम्मीदवार बनाया है। 15 अक्टूबर को वे नामांकन दाखिल करेंगी, और यह खबर सामने आते ही सोशल मीडिया पर उनका पोस्टर वायरल हो गया है।

दिव्या गौतम की उम्मीदवारी इसलिए भी खास मानी जा रही है क्योंकि वे न केवल एक जानी-पहचानी पारिवारिक पृष्ठभूमि से आती हैं, बल्कि एक ऐसी युवा उम्मीदवार हैं जिनकी यात्रा संघर्ष, शिक्षा और विचारधारा- तीनों स्तंभों पर टिकी है। जहां ज्यादातर उम्मीदवार राजनीति में किसी ना किसी सामाजिक या पारिवारिक विरासत के सहारे आते हैं, वहीं दिव्या का सफर अपने दम पर बनी पहचान की मिसाल है। ऐसे दौर में जब बिहार की राजनीति एक बार फिर जातीय गणित और गठबंधनों की गुत्थियों में उलझी हुई है, दिव्या की एंट्री उस पुराने ढांचे को चुनौती देती दिखाई देती हैं।
दीघा सीट पर मुकाबला होगा दिलचस्प
यह बिहार की सबसे बड़ी विधानसभा सीट है, जहां करीब 400 पोलिंग बूथ और 4 लाख से ज्यादा वोटर हैं। दीघा विधानसभा सीट 2008 के बाद अस्तित्व में आई थी। 2010 के विधानसभा चुनाव में जनता दल यूनाइटेड की पूनम देवी ने जीत दर्ज की थी। इसके बाद 2015 में भारतीय जनता पार्टी के संजीव चौरसिया विधायक बने। 2020 में उन्होंने सीपीआई-माले के शशि यादव को हराकर दोबारा जीत दर्ज की।
2028 में संजीव को 97,044 वोट मिले थे, जबकि सीपीआई(एमएल) की उम्मीदवार शशि यादव को 50,971 वोटों से संतोष करना पड़ा था।
दिलचस्प यह है कि इस बार भी सीपीआई(एमएल) ने एक महिला उम्मीदवार को मैदान में उतारकर साफ संकेत दे दिया है कि पार्टी ‘महिला नेतृत्व’ को बढ़ावा देने की अपनी नीति पर कायम है।
युवा वोटरों होंगे प्रभावित
महागठबंधन में इस सीट को लेकर चर्चाएं जारी हैं, लेकिन दीघा क्षेत्र की स्थानीय समीकरणों को देखते हुए यह सीट वाम दलों के लिए रणनीतिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण है। माना जा रहा है कि दिव्या गौतम के चुनावी मैदान में आने से युवा और शिक्षित मतदाताओं का झुकाव इस बार वाम मोर्चे की ओर बढ़ सकता है।
कौन हैं दिव्या गौतम?
- दिव्या पटना यूनिवर्सिटी की पूर्व छात्रा हैं। उन्होंने पटना यूनिवर्सिटी से मास कम्युनिकेशन की पढ़ाई की है। उन्होंने करीब साढ़े तीन साल तक वीमेंस कालेज पटना में बतौर असिस्टेंट प्रोफेसर सेवा दिया है। वह कॉलेज के दिनों से ही राजनीति में सक्रिय रहीं हैं। साल 2012 में वे पटना यूनिवर्सिटी छात्रसंघ चुनाव में AISA की ओर से अध्यक्ष पद की उम्मीदवार थीं, जहां वे दूसरे स्थान पर रहीं।
राजनीतिक सोच और सामाजिक सरोकारों के साथ उन्होंने अपने करियर में भी सफलता हासिल कीं। दिव्या 64वीं बीपीएससी परीक्षा में चयनित होकर बिहार सरकार में आपूर्ति निरीक्षक बनीं। लेकिन सरकारी नौकरी करने के बजाय उन्होंने सामाजिक कार्य और शोध का रास्ता चुना। वर्तमान में दिव्या पीएचडी रिसर्च स्कॉलर हैं और जेआरएफ क्वालिफाइड हैं।
आने वाले दिनों में क्या हो सकता है?
15 अक्टूबर को दिव्या गौतम नामांकन दाखिल करेंगी। उसके बाद चुनावी प्रचार और बहस में उनके मुद्दे- शिक्षा, रोजगार, महिलाओं की सुरक्षा और छात्रों की राजनीति प्रमुखता से सामने आ सकते हैं। दीघा सीट इस बार ‘दिलचस्प त्रिकोणीय मुकाबले’ की ओर बढ़ रही है, बीजेपी बनाम महागठबंधन (सीपीआईएमएल) और लोकल स्वतंत्र प्रत्याशियों के बीच।
अगर दिव्या अपनी जमीनी पकड़ और युवाओं के जुड़ाव को मजबूत कर पाईं, तो यह सीट बिहार की सबसे चर्चित विधानसभा सीटों में से एक बन सकती है।