---Advertisement---

सच्चाई को पर्दे पर उतारती पैरलल सिनेमा की कुछ बेहतरीन कहानियाँ

---Advertisement---

भारत में जब भी सिनेमा की बात की जाती है तो सबसे ऊपर बॉलीवुड का नाम आता है। बॉलीवुड ने बहुत सी कल्ट-क्लासिक और कॉमर्सियल हिट फ़िल्में दी हैं। 1960 के अंत में पैरलल सिनेमा ने एंट्री की, जिसके आने के बाद सिनेमा जगत में काफ़ी बड़े बदलाव हुए। डायरेक्टर श्याम बेनेगल, सत्यजीत रे, ऋत्विक घटक आदि दर्शकों की नज़रों में आने लगे। आज हम ऐसी ही पैरलल सिनेमा की बॉलीवुड फ़िल्म की बात करेंगे जिन्हें एक न एक बार आपको ज़रूर देखना चाहिए।

1. अंकुर (1974)

श्याम बेनेगल की ‘अंकुर’ उस समय के समाज की जाति और लिंग भेदभाव की कड़वी सच्चाई को पर्दे पर उतारती है। फ़िल्म एक गरीब महिला लक्ष्मी (शबाना आज़मी) की ज़िंदगी के इर्द-गिर्द चलती है। लक्ष्मी सामंती व्यवस्था और पुरुषसत्ता से जूझती दिखती है। बेनेगल का निर्देशन और आज़मी की दमदार अदाकारी ने फ़िल्म के हर दृश्य को शानदार बना दिया है। अगर आप उस समय के समाज की कड़वी सच्चाई को समझना चाहते हैं, तो आपको ‘अंकुर’ फ़िल्म ज़रूर देखनी चाहिए।

2. आक्रोश (1980)

गोविंद निहलानी की ‘आक्रोश’ अन्याय, सत्ता और शोषण की दास्तान है। फ़िल्म एक आदिवासी मज़दूर (ओम पुरी) की ज़िन्दगी को दर्शकों के सामने पेश करती है। मज़दूर एक हत्या के झूठे आरोप में फंस गया है। इसके बावज़ूद भी वो पूरी फ़िल्म में अपना पक्ष सामने रखता नहीं दिखाई देता। उसका मौन रहना समाज की क्रूर सच्चाई को दर्शाता है। नसीरुद्दीन शाह और ओम पुरी की सधी हुई अदाकारी इसे एक यादगार फ़िल्म बनाती है। इस फ़िल्म की कहानी आपको झकझोर कर रख देगी।

3. जाने भी दो यारो (1983)

इस सूची में बताई गई फ़िल्मों में ‘जाने भी दो यारो’ मेरी पसंदीदा फ़िल्म है। ये फ़िल्म भारतीय सिनेमा की सबसे बेहतरीन राजनीतिक व्यंग्य फिल्मों में से एक है। फ़िल्म की कहानी दो स्ट्रगलिंग फोटोग्राफरों (नसीरुद्दीन शाह और रवि बसवानी) के इर्द-गिर्द चलती है। दोनों अनजाने में भ्रष्टाचार और हत्या की साजिश का ख़ुलासा करते हुए ख़ुद इन सब में फंस जाते हैं। फ़िल्म के हर हास्य सीन के पीछे भ्रष्ट राजनीति, व्यापार और मीडिया पर एक गहरा कटाक्ष छुपा हुआ है। फ़िल्म का प्रतिष्ठित क्लाइमेक्स सीन और शानदार स्क्रिप्ट इसे आज भी प्रासंगिक बनाता है।

4. सरदारी बेगम (1996)

श्याम बेनेगल की एक और फ़िल्म ‘सरदारी बेगम’ भी इस सूची में शामिल है। इस फ़िल्म की कहानी एक शास्त्रीय गायिका की ज़िन्दगी की जटिलताओं और समाज के साथ उसके संघर्ष को दर्शाती है। गायिका की मृत्यु के बाद, जब उसकी ज़िन्दगी की परतें खुलती हैं, तो कला, परंपरा और नारीवाद के बीच का द्वंद्व एक-एक कर सामने आने लगता है। किरन खेर के जबरदस्त अभिनय और बेनेगल के संवेदनशील निर्देशन के कारण यह फ़िल्म दर्शकों पर गहरा प्रभाव छोड़ती है। संगीत और सामाजिक मुद्दों में रुचि रखने वालों को ये फ़िल्म ज़रूर देखनी चाहिए।

5. शिप ऑफ थीसियस (2012)

समकालीन समय में अगर बॉलीवुड पैरलल सिनेमा की किसी बेहतरीन फ़िल्म की बात की जाए तो वो आनंद गांधी की ‘शिप ऑफ थीसियस’ है। ये एक दार्शनिक फ़िल्म है, जो पैरलल चल रही तीन अलग-अलग कहानियों को अंत में एक साथ जोड़ती है- एक अंधी फोटोग्राफर, एक साधु और एक स्टॉकब्रोकर की। फ़िल्म दर्शकों के सामने पहचान, नैतिकता और परिवर्तन जैसे गहरे सवाल रखती है; ‘क्या कोई व्यक्ति वही रहेगा जब उसके सभी हिस्से बदल दिए जाएँ?’ बेहतरीन सिनेमाटोग्राफी का अंदाज़ा आप इस बात से ही लगा सकते हैं कि फ़िल्म का हर दृश्य आपके मन में घर कर जाएगा।


ये लेख भी पढ़ें-
गगन गिल को मिला 2024 का साहित्य अकादमी पुरस्कार
गगन गिल

वार्षिक साहित्य अकादमी पुरस्कार-2024 की घोषणा हो गई है। इस बार का पुरस्कार हिन्दी की कवयित्री गगन गिल को उनकी कृति ‘मैं जब तक आई बाहर’ के लिए दिया गया है। गिल हिन्दी की प्रतिष्ठित कवयित्री हैं। उन्होंने बतौर पत्रकार अपना करियर शुरू किया, लेकिन बाद में इसे छोड़कर साहित्यिक लेखन को पूरी तरह अपना लिया। आज उनकी लिखी कविताएं अमेरिका, इंग्लैंड और जर्मनी के विश्वविद्यालयों में पढ़ाई जाती हैं। आइए उनके जीवन पर एक नजर डालते हैं। पूरा लेख पढ़ें।

Join WhatsApp

Join Now

---Advertisement---

Leave a Comment