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खोता बचपन, बिकती मासूमियत: जानिए कैसे देश के लाखों बच्चे बन रहे हैं तस्करी का शिकार

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भारत जैसे विकासशील देश में, जहां एक ओर शिक्षा और बाल अधिकारों पर बात की जाती है, वहीं दूसरी ओर बाल तस्करी एक गंभीर समस्या बनी हुई है। हर साल हज़ारों बच्चे तस्करी का शिकार बनकर अपनी मासूमियत और बचपन खो देते हैं। गरीबी, बेरोजगारी और शिक्षा की कमी जैसे सामाजिक असमानताएं इस समस्या को और बढ़ा देती हैं। “सेव द चिल्ड्रेन” की रिपोर्ट के अनुसार, मानव तस्करी के पीड़ितों में 27 प्रतिशत बच्चे होते हैं, जिनमें से दो-तिहाई लड़कियां होती हैं। ये बच्चे न केवल शारीरिक और मानसिक शोषण का शिकार होते हैं, बल्कि उनका बुनियादी अधिकार भोजन, शिक्षा और सुरक्षा भी उनसे छिन जाता है। यह न केवल मानवाधिकारों का उल्लंघन है, बल्कि हमारे समाज की नैतिकता पर भी गहरी चोट है।

मानव तस्करी में यौन शोषण के मामले अधिक

संयुक्त राष्ट्र कार्यालय ड्रग्स एंड क्राइम (UNODC) की 2009 की रिपोर्ट बताती है कि वैश्विक स्तर पर मानव तस्करी का सबसे बड़ा रूप यौन शोषण (79%) है, और इसका शिकार ज़्यादातर महिलाएं और लड़कियां होती हैं। वहीं, जबरन श्रम (18%) मानव तस्करी का दूसरा सबसे आम स्वरूप है। कोरोना महामारी के दौरान लाखों परिवारों की आर्थिक स्थिति इतनी खराब हो गई कि उन्होंने मजबूरी में अपने बच्चों को काम पर भेज दिया, जो बाद में तस्करी की शिकार हुईं।

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 23(1) के तहत मानव तस्करी और जबरन श्रम को पूरी तरह निषिद्ध किया गया है। बावजूद इसके, राजस्थान, केरल, बिहार, झारखंड, उड़ीसा, पश्चिम बंगाल और दिल्ली जैसे राज्यों में यह समस्या बेहद आम हो चुकी है। गरीबी और अशिक्षा इस संकट की सबसे बड़ी वजह मानी जा रही हैं।

प्रतीकात्मक तस्वीर
यूपी, बिहार और आंध्र प्रदेश सर्वाधिक प्रभावित

Child Trafficking in India: Insights from Situational Data Analysis and the Need for Tech-driven Intervention Strategies नामक रिपोर्ट के मुताबिक, 2016 से 2022 के बीच सबसे अधिक बाल तस्करी के मामले उत्तर प्रदेश, बिहार और आंध्र प्रदेश में दर्ज किए गए।

NCRB के पिछले पांच साल के आंकड़ों को देखें तो मानव तस्करी के मामले काफी तेजी से बढ़े हैं। इन पांच वर्षों के दौरान, मानव तस्करी की शिकार होने के बाद रेस्क्यू कर लाए गए पीड़ितों में बाल 18 वर्ष या 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चे और बच्चियां शामिल थे।

सोर्स- NCRB रिपोर्ट
सोर्स- NCRB रिपोर्ट
2022 में लापता बच्चों की संख्या में 7.5 प्रतिशत की वृद्धि

देश में साल 2022 में 83,350 बच्चे लापता हुए, जिनमें 62,946 लड़कियां, 20,380 लड़के और 24 ट्रांसजेंडर शामिल थे। जबकि 2021 में यह संख्या 77,535 थी। इसी साल 80,561 बच्चों को रेस्क्यू कर बाहर निकाला गया, लेकिन रिपोर्ट बताती है कि ऐसी संभावना बनी हुई है जिसमें बड़ी संख्या में बच्चे बाल तस्करी के शिकार हुए होंगे।

बाल तस्करी पर राज्यवार विश्लेषण 

राजस्थान: फैक्टियों में गुजरती बच्चों की मासूमियत 

राष्ट्रीय बाल तस्करी चार्ट में सबसे शीर्ष राज्यों में शामिल है, जिससे अपराध की प्रवृत्ति और सरकारी आंकड़ों की हकीकत सामने आती है। 24 अगस्त 2021 को विरोधाभासी रिपोर्टों पर NHRC ने सभी राज्यों से रिपोर्ट मांगी थी। आज भी गरीबी और बेरोजगारी के कारण राजस्थान में बाल तस्करी गंभीर समस्या है। यहां कम मजदूरी पर बच्चों को फैक्ट्रियों में काम कराया जाता है, जिनमें अन्य गरीब राज्यों से लाए गए बच्चे भी शामिल हैं।

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केरल: समृद्ध राज्य में बाल तस्करी की काली सच्चाई

देश के विकसित राज्यों में गिने जाने वाला केरल भी बाल तस्करी के मामलों में पीछे नहीं है। वर्ष 2020 में, बाल तस्करी के मामलों में केरल देश में दूसरे स्थान पर रहा। यहाँ अन्य राज्यों से गरीब बच्चों को लाकर सस्ती मजदूरी या देखभाल के बहाने NGO और अनाथालयों में रखे जाने की घटनाएं सामने आईं। 2021 में एक NGO कर्मचारी को बाल तस्करी के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। इससे पहले 2014 में पलक्कड़ जिले में पुलिस और प्रशासन ने बिहार और झारखंड से लाए जा रहे करीब 600 बच्चों को बचाया था, जिन्हें अनाथालयों में भेजने के बहाने राज्य में लाया गया था।

मजबूर और शोषित महिला को दर्शाती प्रतीकात्मक तस्वीर

बिहार: गरीबी, बाढ़ और तस्करी की मार

बिहार के गरीब और बाढ़ प्रभावित जिले बाल तस्करी की चपेट में सबसे ज्यादा हैं। कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान इस समस्या ने और अधिक गंभीर रूप ले लिया। बेरोजगारी और स्कूलों के बंद होने ने बच्चों को असुरक्षा की ओर धकेल दिया। जून 2023 में RPF और GRP ने 59 बच्चों में से 30 को महाराष्ट्र ले जाए जाने से पहले ही बचा लिया। इसी तरह, जुलाई-अगस्त 2021 में 26 बच्चे तस्करों के चंगुल से छुड़ाए गए। 2020 में ट्रेनों से 313 बच्चों को और 2021 के अगस्त तक 426 बच्चों को रेस्क्यू किया गया।

जयपुर में जुलाई-अगस्त 2020 में बिहार के चार बाल श्रमिकों की मृत्यु भी बाल तस्करी की भयावहता को दर्शाती है। जुलाई से सितंबर 2020 के बीच, करीब 250 बच्चों को बाल तस्करी से मुक्त कराया गया।

ओडिशा: आदिवासी जिलों में बच्चों की बोली

ओडिशा के आदिवासी बहुल जिलों में बाल तस्करी की घटनाएं तेजी से बढ़ी हैं, खासकर कोरोना काल में। जुलाई-अगस्त 2021 के बीच चाइल्डलाइन फाउंडेशन ऑफ इंडिया ने गंजम जिले के बरहामपुर रेलवे स्टेशन से 20 किशोरों को रेस्क्यू किया, जिनमें से 18 लड़कियाँ थीं।

इसी दौरान, राउरकेला से CWC और पुलिस ने पांच महिलाओं और दो पुरुषों को गिरफ्तार किया, जो पैसों के लालच में गरीब परिवारों के बच्चों को अन्य राज्यों में बेचने का काम कर रहे थे।

झारखंड: सुनहरे भविष्य और अपनों ने बनाया तस्करी का शिकार 

झारखंड के साहिबगंज, खूंटी, चाईबासा, गोड्डा, दुमका और रांची जिला लड़कियों की मानव तस्करी के लिए सबसे हाॅटस्पाॅट जिले के रूप में जाने जाते हैं। साहिबगंज और गोड्डा से फरवरी 2022 में तस्करी कर दिल्ली ले जाए गए पाँच लड़कियों और एक लड़के को मुक्त कराया गया। इससे पहले जनवरी 2021 में रांची एयरपोर्ट से सात नाबालिग लड़कियों को बचाया गया। राज्य सरकार के एकीकृत पुनर्वास एवं संसाधन केंद्र (IRRC) द्वारा वर्ष 2019 से 2020 के बीच 500 से अधिक बच्चों को बाल तस्करी से बचाया गया। आदिवासी क्षेत्रों में अशिक्षा और गरीबी इस समस्या की जड़ में है।

ये ऐसे मामले हैं जो पुलिस में रिपोर्ट किए जाते हैं। बाल तस्करी के मामलों में डाटा की कमी भी एक प्रमुख कारण है। पिछले पांच सालों के आंकड़ों के अनुसार, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, बिहार, ओडिशा, झारखंड, केरल, और दिल्ली लगातार बाल तस्करी के मामलों में सबसे ऊपर रहे हैं। हालांकि, ये आंकड़े केवल पुलिस द्वारा दर्ज किए गए मामलों पर आधारित हैं, जबकि NGO और समाजसेवियों के अनुसार वास्तविक आंकड़े इनसे कहीं अधिक हो सकते हैं। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) हर साल राज्यों से प्राप्त डाटा को प्रकाशित करता है, लेकिन इसमें केवल पुलिस द्वारा दर्ज मामलों को ही शामिल किया जाता है। अन्य विभाग, जो बच्चों के रेस्क्यू और तस्करी को रोकने के लिए काम करते हैं, उनके द्वारा बचाए गए बच्चों का डाटा इस रिपोर्ट में शामिल नहीं होता।

रिपोर्ट बताती है कि देश के कई हिस्सों में आज भी बाल तस्करी एक गहरी और चिंताजनक सच्चाई बनी हुई है। यह केवल सामाजिक ही नहीं, बल्कि प्रशासनिक और कानूनी व्यवस्था पर भी सवाल खड़े करता है। ज़रूरत है जागरूकता बढ़ाने, ज़मीनी स्तर पर निगरानी मजबूत करने और तस्करों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने की, ताकि देश के बच्चों को एक सुरक्षित और उज्ज्वल भविष्य मिल सके।

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