मई 2023 से जातीय हिंसा से जूझ रहे मणिपुर के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह ने इस्तीफा दे दिया है। इसके बाद राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू हो गया है और राज्य विधानसभा को निलंबित कर दिया गया है। इसके पीछे की वजह हिंसा के चलते सरकार के खिलाफ हो रहे विरोध प्रदर्शन और विपक्ष द्वारा सदन में अविश्वास प्रस्ताव लाने की धमकी देना है।
आपको बताते चलें कि 9 फरवरी को मुख्यमंत्री बीरेन सिंह की नई दिल्ली में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह और बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा के साथ मीटिंग थी। इसके बाद उन्होंने इंफाल लौटकर राज्यपाल अजय भल्ला को इस्तीफा दे दिया।
गर्वनर ने इस्तीफा स्वीकारने के बाद 10 फरवरी को बजट सत्र बुलाने के आदेश को अमान्य और शून्य घोषित कर दिया। इसके चलते विधानसभा सत्र को रद्द कर दिया गया।
सरकार के खिलाफ तेज होते विरोध के स्वर
हिंसाग्रस्त मणिपुर की बीजेपी शासित एन बीरेन सरकार लंबे समय से विरोध का सामना कर रही थी। विरोध के स्वर भाजपा के अंदर से भी उठने लगे थे। बताया गया कि बीजेपी के विधायक भी केंद्रीय नेतृत्व से मुख्यमंत्री बदलने की मांग कर रहे थे। कांग्रेस ने विधानसभा सत्र में बीरेन सिंह सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने की भी धमकी दी थी।
जातीय हिंसा और बीरेन सिंह को हटाने की मांग
करीब 21 महीने से मणिपुर जातीय हिंसा का दंश झेल रहा है। इसके चलते अब तक करीब 250 लोगों की मौत हो चुकी है और हजारों लोगों को मजबूरन विस्थापित होना पड़ा है। इस जातीय हिंसा के चलते विपक्षी दल एन बीरेन सिंह से लंबे समय से इस्तीफा की मांग कर रहे थे।
न्यूज ऐजेंसी एनआई के अनुसार, मणिपुर में मैतेई और कुकी समुदाय के बीच लगातार हिंसा जारी है। ये हिंसा मणिपुर हाईकोर्ट के उस आदेश के बाद भड़की थी, जिसमें राज्य के मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाती सूची में शामिल करने पर विचार करने की बात कही गई थी।
इस आदेश के बाद ऑल ट्राइबल स्टूडेंट यूनियन ऑफ मणिपुर (ATSUM) ने3 मई 2023 को एक रैली निकाली, जिसके बाद दोनों समुदायों के बीच हिंसा भड़क उठी। ये हिंसा अब तक रह-रह कर राज्य को जख्म दे रही है।
KPA और NPP ने अपना समर्थन वापस लिया
आपको बताते चलें कि 60 विधानसभा सीट वाले मणिपुर में साल 2022 में विधानसभा चुनाव हुए थे। यहां बीजेपी ने सरकार बनाई थी। हालांकि बीते महीने NPP विधायक कायसी की मौत हो गई थी। इसके चलते अब राज्य में कुल 59 विधायक बचे हैं।
इन 59 विधायकों पर नजर डालें तो भाजपा के 37, नेशनल पीपल्स पार्टी (NPP) के 6, नागा पीपल्स फ्रंट (NPF) के 5, कांग्रेस के भी 5, 2 कुकी पीपल्स अलायंस(KPA) से, 1 जनता दल यूनाइटेड(JDU) और 3 स्वतंत्र सदस्य थे। जातीय हिंसा के बाद KPA और NPP ने भाजपा सरकार से अपना सपोर्ट वापस ले लिया। बीरेन सरकार से समर्थन खींचने के बावजूद NPP के दो विधायकों ने समर्थन जारी रखा।
बीजेपी में ही तेज हुई विरोध के स्वर
बीबीसी हिन्दी की रिपोर्ट के मुताबिक भाजपा के लोग ही मुख्यमंत्री बदलने की मांग कर रहे थे। विधानसभा सत्र में बीरेन सिंह के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने की तैयारी भी हो रही थी. अगर इसमें बीजेपी के ज्यादातर विधायक सीएम के खिलाफ वोट करते तो पार्टी की काफी किरकिरी होती. इसलिए बीजेपी के केंद्रीय नेताओं ने काफी सोच समझकर ही यह फैसला लिया है.
इस्तीफे पर क्या बोले बीरेन सिंह
इसके बाद सीएम ने इस्तीफा दे दिया। उन्होंने अपने इस्तीफे में लिखा कि अब तक मणिपुर के लोगों की सेवा करना मेरे लिए सम्मान की बात रही। मैं हर मणिपुर के हितों की रक्षा के लिए समय पर की गई कार्रवाई, हस्तक्षेप, विकास कार्य और विभिन्न परियोजनाओं के कार्यान्वयन के लिए केंद्र सरकार का बहुत आभारी हूं।
गर्वनर ने राष्ट्रपति को सौंपी रिपोर्ट
इस्तीफा के चार दिन बाद राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू हो गया। केंद्रीय गृह सचिव गोविद मोहन ने बताया कि गर्वनर अजय भल्ला ने राष्ट्रपति को रिपोर्ट सौंपी थी। इस रिपोर्ट और अन्य सूचनाओं के आधार पर राष्ट्रपति द्वारा यह निर्णय लिया गया कि ऐसी स्थिति उत्पन्न हो गई है कि राज्य सरकार संविधान के प्रावधानों के तहत सरकार नहीं चला सकती।
हालांकि राष्ट्रपति शासन लगने की बात सामने आते ही मणिपुर कांग्रेस ने इसका विरोध किया था। वहीं कुकी-जो समूह ने इस कदम का स्वागत किया है। ये पहले भी राज्य में राष्ट्रपति शासन की मांग कर रहे थे। संविधान के अनुच्छेद 356 के तहत राष्ट्रपति शासन लगाया जाता है।
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