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डोनाल्ड ट्रंप का फैसला: WHO से बाहर हुआ अमेरिका; जानिए वजहें और संगठन के योगदान

डोनाल्ड ट्रंप का फैसला: WHO से बाहर हुआ अमेरिका; जानिए वजहें और संगठन का योगदान
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अमेरिका के 47वें राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने शपथ लेने के बाद विश्व स्वास्थ्य संगठन(WHO) से बाहर आने के लिए कार्यकारी आदेश पर हस्ताक्षर कर दिए हैं। ट्रंप अपने पहले कार्यकाल(2017-21) के दौरान भी ऐसी घोषणा कर चुके थे, लेकिन बाइडेन सरकार ने ट्रंप के फैसले को उलट दिया था। मगर अब एक बार फिर ट्रंप ने वही कदम उठाते हुए अमेरिका द्वारा WHO को मुहैया कराई जाने वाली फंडिंग और अन्य मदद को रोक दिया है।

WHO से बाहर निकलने की क्या वजहें गिनाईं
व्हाइट हाउस ने इसके पीछे कई वजहें गिनाई हैं। पहला कोविड-19 महामारी से निपटने में लापरवाही बरतना, तत्काल जरूरी सुधारों को अपनाने में संस्था की विफलता और सदस्य देशों के अनुचित राजनीतिक प्रभावों से स्वतंत्र रहने में संस्था की असफलता है।

इसके अलावा कहा गया है कि संस्था अमेरिका से अनुचित रुप से भारी मात्रा में भुगतान करने की मांग कर रहा है। यह भुगतान अन्य देशों के लिए तय किए गए भुगतान की तुलना में कहीं ज्यादा है।

इसके लिए चीन का उदाहरण देते हुए अमेरिका से तुलना की गई है। 140 करोड़ की आबादी वाले चीन की जनसंख्या अमेरिका की 300 फीसदी है, लेकिन फिर भी WHO में अमेरिका से 90 फीसदी कम योगदान देता है। कार्यकारी आदेश की ऑरिजनल कॉपी इस लिंक से पढ़ें।

WHO क्या काम करता है
साल 1948 में बना यह संगठन संयुक्त राष्ट्र की ऐजेंसी है। यह 194 सदस्य देशों के साथ मिलकर स्वास्थ्य सेवाएं मुहैया कराने का काम करता है ताकि प्राथमिक स्वास्थ्य से जुड़े ढांचे को मजबूत कर सके।

यह पूरी दुनिया में सदस्य देशों की सरकारों को गाइडलाइन भी जारी करता है, ताकि इन मानकों के अनुसार स्वास्थ्य से जुड़ी योजनाएं बनाई जा सकें। यह कोई खास बीमारी से निपटने के लिए विशेष कार्यक्रम भी आयोजित कराने में मदद करती है, ताकि उससे जल्दी निपटा जा सके।

WHO में कौन-कितनी और कैसे फंडिंग देता है
अमेरिका WHO को सबसे ज्यादा फंड देने वालों में से एक है। यह कुल फंडिंग का लगभग पांचवां हिस्सा देता है। फंडिंग और विशेषज्ञों की कमी के चलते पूरी दुनिया को कई समस्याओं का सामना करना पड़ेगा।

WHO के पास दो जरिए से फंडिंग पहुंचती है। पहला एसेस्ड कॉन्ट्रीब्यूशन, यानी सदस्य देश अपने तय किए गए अंश को देते हैं। इसे सदस्यता शुल्क भी कह सकते हैं। यह भुगतान सदस्य देश की जीडीपी का कुछ प्रतिशत होता है, जिसे संयुक्त राष्ट्र महासभा तय करती है। इस तरह से संगठन को 20 फीसदी से भी कम फंडिंग मिलती है।

फंडिंग का दूसरा जरिया स्वैच्छिक योगदान है। सबसे ज्यादा और बचा हुआ फंड इसके जरिए ही पहुंचता है। यह मुख्य तौर पर सदस्य देशों, अंतर्राष्ट्रीय संगठनों, परोपकारी संस्थाओं या अन्य निजी क्षेत्र के लोगों द्वारा दिया जाता है।

आपको बता दें कि समय के साथ, WHO बजट में एसेस्ड कॉन्ट्रीब्यूशन का अनुपात लगातार कम होता गया है। WHO बजटिंग और योजना रिपोर्ट के अनुसार यह 1990 में 46% से घटकर 2020-21 में 16% रह गया। वहीं इसी दौरान स्वैच्छिक योगदान का हिस्सा लगभग उसी अवधि में 54% से बढ़कर 84% हो गया। ये आंकड़े 2024-25 के बजट में भी समान हैं, जिसमें एसेस्ड कॉन्ट्रीब्यूशन लगभग 16.8% पर बना हुआ है।

WHO के खास योगदान
करीब 77 सालों के इतिहास में WHO ने पूरी दुनिया में स्वास्थ्य के लिए बहुत काम किया है। जैसे मलेरिया, चेचक, एड्स, कैंसर, ट्रॉपिकल डिजीज(उष्णकटिबंधीय इलाकों में होने वाली बीमारी) की रोकथाम, हेपेटाइटिस सी की दवा को सस्ता बनाना, पीलिया को नियंत्रण में लाना और तमाम तरह के वैक्सीनेशन प्रोग्राम चलाए हैं।

अमेरिका द्वारा WHO की फंडिंग और अन्य विशेषज्ञों से जुड़ी मदद रोक देने से कई तरह की स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याएं सामने आएंगी। क्योंकि बीते 77 सालों में संगठन ने कई बड़ी मुहिम चलाकर स्वास्थ्य के क्षेत्र में अहम योगदान दिया है। आइए एक नजर में WHo के अहम योगदान को जानते हैं, मगर इससे पहले अमेरिका द्वारा की जाने वाली फंडिंग के आंकड़ों पर एक नजर डालते हैं।

अमेरिका द्वारा की जाने वाली फंडिंग

संयुक्त राज्य अमेरिका ऐतिहासिक रूप से WHO को सबसे बड़ा योगदानकर्ता रहा है। यह दोनों ही तरह से एसेस्ड और स्वैच्छिक माध्यमों से सबसे ज्यादा योगदान करता है। 2012 और 2018 के बीच, संयुक्त राज्य अमेरिका से स्वैच्छिक वित्तपोषण औसतन प्रति वर्ष लगभग 254 मिलियन अमरीकी डॉलर था।

2024-25 की अवधि में, संयुक्त राज्य अमेरिका से अनुमानित योगदान 260 मिलियन अमरीकी डॉलर दर्ज किया गया है। इसी समय 698 मिलियन अमरीकी डॉलर का स्वैच्छिक योगदान भी मिला। नवंबर 2024 तक विश्व स्वास्थ्य संगठन के कार्यक्रम बजट में इसका हिस्सा 14% रहा।

पोलियो को जड़ से खत्म करने की मुहिम
पोलियो वायरस को जड़ से खत्म करने के लिए WHO ने 1952 में बड़े पैमाने पर मुहिम चलाई। जॉन्स सॉल्ट ने इनेक्टिवेटेड पोलियो वायरस वैक्सीन को डेवलप किया, जिसे इंजेक्शन के जरिए दिया जाता था। यह बीमारी ज्यादातर छोटे बच्चों को प्रभावित करके तंत्रिका तंत्र पर हमला करती है। यह बीमारी बच्चों की रीढ़ की हड्डी और सांस लेने वाले तंत्र को नष्ट कर देती है। 1988 में वैश्विक पोलियो उन्मूलन मुहिम शुरू की गई।

इस मुहिम के जरिए लगाई जा रहीं 13 वैक्सीन
1974 में WHO ने टीकाकरण का विस्तृत प्रोग्राम शुरू किया। इसके जरिए दुनिया भर के बच्चों को जिन्दगी बचाने से जुड़ी अहम वैक्सीन लगाने की मुहिम शुरू की। आज इस प्रोग्राम के जरिए 13 वैक्सीन प्रदान की जाती हैं। इसमें बीसीजी, डिप्थीरिया, टिटनेस, पोलियो, हेपेटाइटिस, कोविड-19, मीसल्स समेत अन्य जरूरी वैक्सीन प्रदान की जाती हैं।

चेचक को जड़ से खत्म करने का अभियान
1980 में WHO ने चेचक को खत्म करने की मुहिम चलाई गई। 12 साल के लंबे टीकाकरण अभियान के बाद इसे दुनिया से जड़ से खत्म कर दिया गया। यह इंसानों की ज्ञात सबसे घातक बीमारियों में से एक थी।

HIV से होने वाले AIDS की रोकथाम की पहल
ह्युमन इम्युनोडिफिशिएंसी वायरस (HIV) से AIDS जैसी खतरनाक बीमारी होती है। 1987 में पहली बार एंटीरेट्रोवायरल दवाई का लाइसेंस दिया गया। यह दवाई HIV वायरस को फैलने और एड्स में बदलने से रोकने में मदद करती है। WHO ने इसकी रोकथाम के लिए दुनिया भर में मुहिम चलाई।

गंभीर बीमारियों की रोकथाम के लिए बना ग्लोबल फंड
2001 में एड्स, टीवी, मलेरिया जैसी भयानक बीमारियों की रोकथाम के लिए ग्लोबल फंड बनाया गया। शरूआती दौर में यह संयुक्त राष्ट्र और अन्य बड़े डोनर की मदद से शुरू किया गया था। 2003 में WHO ने तंबाकू से होने वाली मौतों और बीमारियों को रोकने के लिए बड़ी मुहिम की शुरूआत की।

टीवी, स्ट्रोक, डायबटीज और कैंसर के लिए मुहिम
2008 में WHO ने रिपोर्ट में बताया दिल की बीमारियां और स्ट्रोक दुनिया में सबसे ज्यादा मौतों की वजह हैं। 2010 में टीबी का पता लगाने के लिए पहला रैपिड मॉल्यूक्युलर टेस्ट शुरू किया। 2012 में पहली बार WHO के सदस्य देशों ने दिल की बीमारियों, डायबटीज, कैंसर और फेफड़ों से संबंधी बीमारी की रोकथाम और प्रसार के लिए लक्ष्य निर्धारित किए। 2013 में दिमागी बीमारी को रोकने के लिए व्यापक प्लान बनाया गया।

इबोला और सतत विकास के 17 लक्ष्य 

2014 में WHO ने इबोला की बीमारी को अंतर्राष्ट्रीय आपातकाल घोषित किया। यह बीमारी सबसे पहले पश्चिम अफ्रीका के गुयाना से शुरू हुई थी। हालांकि इस बीमारी का पहली बार पता साल 1976 में लगा था, लेकिन 2014-16 के दौरान अफ्रीका में तेजी से फैली थी। 2015 में संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्यों और संगठनों ने मिलकर सतत विकास लक्ष्य निर्धारित किए। इन्हें 2030 तक पूरे करने हैं। इसमें 17 लक्ष्यों के तहत 169 टार्गेट शामिल हैं। तीसरे लक्ष्य में सभी को स्वस्थ जीवन मुहैया कराते हुए लोगों का कल्याण करना शामिल है।

जीका, कोविड और मलेरिया वैक्सीन में योगदान

2016 में WHO ने जीका इन्फैक्शन को सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल घोषित किया गया। इसी साल इबोला फिर से फैला और संगठन ने फिर से कमान हाथ में ली। 2020 में नोवल कोरोना वायरस को भी सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल घोषित किया गया। अमेरिका ने इसी आपातकाल के दौरान संगठन पर लापरवाही बरतने का आरोप लगाया है। 2021 में बच्चों के लिए मलरिया वैक्सीन की शुरूआत की। इसी साल टीवी की रोकथाम और देखभाल के लिए मुहिम चलाई गई। एंटीरेट्रोवायरल थेरेपी की भी शुरूआत की गई।


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डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिका में वापसी की है। उन्होंने अमेरिका के 47वें राष्ट्रपति के तौर पर सोमवार को शपथ ग्रहण की। इसके साथ ही उन्होंने कई बड़े फैसले भी लिए। इससे पूरी दुनिया में बदलाव देखने को मिलेंगे। इन फैसलों में पेरिस जलवायु समझौते, डब्ल्यूएचओ, सजा माफी, सीमा और इमिग्रेशन जैसे मुद्दे शामिल हैं।

पेरिस जलवायु समझौते से आए बाहर
ट्रंप ने बढ़ते वैश्विक तापमान को कम करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हुए पेरिस जलवायु समझौते से अमेरिका को बाहर करने के आदेश पर हस्ताक्षर कर दिए हैं। आपको बता दें कि ट्रंप इससे पहले साल 2017 में भी ऐसा कर चुके हैं, लेकिन बाइडेन सरकार के आने के बाद अमेरिका पेरिस समझौते से दोबारा जुड़ा था। पूरा लेख पढ़ें।

 

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