“मुझे लिखना बहुत था बहुत कम लिख पाया। मैंने देखा बहुत, सुना भी मैंने बहुत, महसूस भी किया बहुत, लेकिन लिखने में थोड़ा ही लिखा।”
– विनोद कुमार शुक्ल
हिन्दी साहित्य के लोकप्रिय लेखक विनोद कुमार शुक्ल को देश का सर्वोच्च साहित्य सम्मान ज्ञानपीठ पुरस्कार मिलेगा। छत्तीसगढ़ के पहले लेखक हैं जिन्हें ये पुरस्कार दिया जा रहा है। साथ ही शुक्ल ये सम्मान प्राप्त करने वाले हिन्दी साहित्य के 12वें लेखक हैं। ज्ञानपीठ पुरस्कार साहित्य में लेखक के आद्वितीय योगदान के लिए दिया जाता है। शुक्ल आपनी कविताएँ, कहानियों और लेख के लिए साहित्य प्रेमियों में प्रसिद्ध हैं और समकालीन हिन्दी साहित्य में शुक्ल की आपनी अलग पहचान है। हालाँकि पिछले कुछ समय से शुक्ल बच्चों के लिए लेख रहे हैं।
साहित्य में अद्वितीय योगदान
विनोद कुमार शुक्ल का उनकी सहज भाषा और गहरी संवेदनशीलता के लिए जाना जाता है। वे कविता, उपन्यास और कहानियों में समान रूप से दक्ष हैं। “दीवार में एक खिड़की रहती थी” जैसी रचनाओं के लिए उन्हें 1999 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था। उनकी एक अन्य चर्चित रचना “नौकर की कमीज” पर प्रसिद्ध निर्देशक मणि कौल ने 1979 में फिल्म भी बनाई थी।
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ज्ञानपीठ पुरस्कार एक बड़ी उपलब्धि
ज्ञानपीठ पुरस्कार भारत का सबसे प्रतिष्ठित साहित्यिक सम्मान है, जिसे भारतीय भाषाओं के साहित्यकारों को उनके असाधारण योगदान के लिए दिया जाता है। पुरस्कार के साथ 11 लाख रुपये, माँ सरस्वती की कांस्य प्रतिमा और प्रशस्ति पत्र के साथ दिया जाता है।
विनोद कुमार शुक्ल की लोकप्रिय रचना
जो मेरे घर कभी नहीं आएँगे
मैं उनसे मिलने
उनके पास चला जाऊँगा।
एक उफनती नदी कभी नहीं आएगी मेरे घर
नदी जैसे लोगों से मिलने
नदी किनारे जाऊँगा
कुछ तैरूँगा और डूब जाऊँगा
पहाड़, टीले, चट्टानें, तालाब
असंख्य पेड़ खेत
कभी नहीं आएँगे मेरे घर
खेत-खलिहानों जैसे लोगों से मिलने
गाँव-गाँव, जंगल-गलियाँ जाऊँगा।
जो लगातार काम में लगे हैं
मैं फ़ुरसत से नहीं
उनसे एक ज़रूरी काम की तरह
मिलता रहूँगा—
इसे मैं अकेली आख़िरी इच्छा की तरह
सबसे पहली इच्छा रखना चाहूँगा।
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