झारखंड में लड़कियों की शादी की औसत उम्र महज 21 वर्ष है, जो पूरे देश में सबसे कम है। यह खुलासा भारत सरकार के सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय की हालिया रिपोर्ट ‘भारत में महिला और पुरुष 2024’ में हुआ है। रिपोर्ट के अनुसार, झारखंड की युवतियां देश के अन्य राज्यों की तुलना में कम उम्र में विवाह के बंधन में बंध जाती हैं, जिससे यह साफ झलकता है कि राज्य में शिक्षा, करियर और आर्थिक आत्मनिर्भरता के अवसर सीमित हैं।
जम्मू-कश्मीर में युवतियों की औसत विवाह आयु 26 वर्ष है, जबकि हिमाचल प्रदेश और पंजाब में यह 24 वर्ष है। वहीं, झारखंड के पड़ोसी राज्यों की बात करें तो बिहार में यह उम्र 22.2, ओडिशा में 22, उत्तर प्रदेश में 22.5 और छत्तीसगढ़ में 21.6 वर्ष है, जबकि राष्ट्रीय औसत 22.7 वर्ष है।
रिपोर्ट में शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में बड़ा अंतर भी सामने आया है। शहरी झारखंड में विवाह की औसत आयु 22.6 वर्ष है, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में यह घटकर 20.2 वर्ष रह गई है। चिंताजनक बात यह है कि 2017 से अब तक यह आंकड़ा लगातार नीचे जा रहा है, जो समाज में एक नकारात्मक बदलाव का संकेत है।
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सरकारी योजनाएं नाकाफी, जमीन पर असर नहीं
केंद्र और राज्य सरकार महिला सशक्तीकरण को लेकर कई दावे करती हैं, कि बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ, सुकन्या समृद्धि योजना, मुख्यमंत्री कन्यादान जैसी योजनाएं वर्षों से लागू हैं, लेकिन आंकड़े इन योजनाओं की जमीन पर असरदार होने पर सवाल खड़े करते हैं।
‘मुख्यमंत्री कन्यादान योजना’ का उद्देश्य आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों की मदद करना है, लेकिन कई बार यह योजना ही कम उम्र में विवाह के लिए प्रेरित करती है, ताकि लोग सरकारी लाभ प्राप्त कर सकें।
सेकेंडरी एजुकेशन में बढ़ता ड्रापआउट दर
कम उम्र में शादी का बड़ा कारण लड़कियों की अधूरी शिक्षा है। केंद्र सरकार की यूडायस प्लस रिपोर्ट 2023-24 और झारखंड शिक्षा परियोजना की रिपोर्ट के अनुसार, राज्य में अपर प्राइमरी (5-8क्लास) जाते-जाते 9 प्रतिशत लड़कियां स्कूल से ड्रापआउट ले लेती हैं, जबकि सेकेंडरी ( 9-10) में 15.16 प्रतिशत लड़कियां ड्रापआउट कर जाती हैं।
यूडायस प्लस की रिपोर्ट में बताया गया है कि इसके अनेक कारण हैं, जिनमें ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लड़कियों के लिए घर से स्कूलों की दूरी, सुरक्षित यातायात की कमी, सामाजिक दबाव और आर्थिक तंगी का होना भी शमिल है।
तपोवन की रहने वाली 20 वर्षीय रानी बताती है, “वह आगे पढ़ना चाहती है, लेकिन घरवालों ने कहा कि अब शादी की उम्र हो गई है। अब तुम घर का काम सीखो।” ऐसी कहानियां राज्य के हर गांव-प्रखंड में आम हैं।
झारखंड में युवतियों की औसत विवाह आयु 21 वर्ष होना शिक्षा, जागरूकता और महिला सशक्तीकरण पर गंभीर प्रश्न खड़ा करता है। ग्रामीण क्षेत्रों में यह आयु घटकर 20.2 वर्ष रह जाती है, जो शिक्षा के प्रति जागरूकता की कमी, आर्थिक निर्भरता और पितृसत्तात्मक सोच का परिणाम है। जब तक लड़कियों को शिक्षा और सुरक्षा की समुचित सुविधा सुनिश्चित नहीं की जाएगी, तब तक उनका समयपूर्व विवाह नहीं रुकेगा। समाज को समझना होगा कि विवाह सही समय पर हो, जब लड़की पूर्णतः तैयार हो। झारखंड की बेटियां सक्षम हैं, उन्हें सिर्फ उड़ने के लिए पंख देने की ज़रूरत है।
-डॉ. कुमारी उर्वशी, सहायक प्राध्यापिका, हिंदी विभाग, रांची यूनिवर्सिटी, रांची
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