---Advertisement---

17 साल, 14 प्रधानमंत्री: नेपाल में क्यों उठ रही राजतंत्र की मांग?

---Advertisement---

नेपाल में लोकतंत्र की स्थापना के 17 साल बाद एक बार फिर राजशाही की बहाली की मांग ज़ोर पकड़ते नजर आ रही है। काठमांडू की सड़कों पर हजारों लोग उतर आए हैं, जो नेपाल को फिर से राजतंत्र में बदलने की मांग कर रहे हैं। इस आंदोलन की अगुवाई राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी (आरपीपी) और अन्य राजशाही समर्थक संगठनों ने की है। प्रदर्शनकारियों का कहना है कि चुनी हुई सरकारें न तो संविधान को प्रभावी रूप से लागू कर पाई हैं और न ही देश में स्थिरता ला सकी हैं, इसलिए राजशाही को फिर से स्थापित करना जरूरी हो गया है।

कैसे शुरू हुआ विरोध प्रदर्शन 

नेपाल में राजशाही की बहाली की मांग तब तेज हुई जब पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह ने जनता को संबोधित करते हुए राजतंत्र के समर्थन में आने की अपील की। उनके संदेश ने राजशाही समर्थकों में नया जोश भर दिया, जिससे देशभर में विरोध प्रदर्शनों की लहर दौड़ गई। काठमांडू में हुए विशाल प्रदर्शन ने सत्ताधारी दलों नेपाली कांग्रेस, सीपीएन-यूएमएल और माओवादी सेंटर की चिंता बढ़ा दी और राजनीतिक अस्थिरता गहरा गई।

यह भी पढ़ें: पाकिस्तान में पैसेंजर ट्रेन हाईजैक, BLA ने 100 से अधिक यात्रियों को बनाया बंधक; गोलीबारी में 6 सैनिकों की मौत

सत्ता की अस्थिरता ने बढ़ाया जन असंतोष 

राजशाही की वापसी की मांग का यह आंदोलन अचानक नहीं फूटा, बल्कि यह वर्षों से बढ़ते असंतोष का परिणाम है। नेपाल ने 2008 में लोकतंत्र को अपनाया था, लेकिन बीते 17 वर्षों में 14 प्रधानमंत्री बदल चुके हैं। कोई भी प्रधानमंत्री अपने 5 वर्ष का कार्यकाल पूरा नहीं कर सका, जिससे देश में स्थायी सरकार कभी नहीं चल सकी। नेपाल के लोगों को उम्मीद थी कि लोकतंत्र से विकास और स्थिरता आएगी, लेकिन लगातार सरकारों के असफल होने से जनता में असंतोष है और वे सड़कों पर उतर कर राजशाही की वापसी की मांग कर रहे हैं।

नेपाल में राजशाही के पतन की कहानी

नेपाल में 2008 में राजशाही समाप्त हुई, जिसके पीछे कई राजनीतिक और सामाजिक कारण थे। सत्ता संघर्ष, जनआंदोलन, लोकतंत्र की बढ़ती मांग और राजघराने की घटनाओं ने इस बदलाव को गति दी, जिससे देश ने लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था को अपनाया। जिनमें कुछ प्रमुख कारण ये हैं:

2001: राजमहल हत्याकांड में तत्कालीन राजा वीरेंद्र शाह और उनके परिवार की हत्या कर दी गई, जिससे देश में गहरा राजनीतिक संकट पैदा हुआ।

2005: राजा ज्ञानेंद्र शाह ने आपातकाल लागू कर संसद को भंग कर दिया। उनकी इस तानाशाही प्रवृत्ति के खिलाफ देशभर में आंदोलन शुरू हो गए।

2006: जनआंदोलन-2 के तहत जबरदस्त विरोध प्रदर्शन हुए, जिसके कारण ज्ञानेंद्र शाह को सत्ता छोड़नी पड़ी।

2007: नेपाल में संविधान सभा का गठन हुआ, जिसने देश को लोकतांत्रिक गणराज्य में बदलने का निर्णय लिया।

2008: नेपाल को आधिकारिक रूप से गणराज्य घोषित किया गया, और राजशाही को समाप्त कर दिया गया।

क्या कहा पीएम ओली ने?

विरोध प्रदर्शन के बाद, नेपाल के वर्तमान प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने कहा कि नेपाल का संविधान जन निर्वाचित संविधान सभा द्वारा बनाया गया है और लोकतंत्र को मजबूत करना हम सभी की जिम्मेदारी है। उन्होंने कहा कि यदि पूर्व राजा सत्ता में वापसी चाहते हैं, तो लोकतांत्रिक प्रक्रिया के तहत आगे बढ़ने का आह्वान किया और देश में फिर से अस्थिरता लाने के किसी भी प्रयास को स्वीकार नहीं किया जाएगा।

प्रधानमंत्री ने यह भी उल्लेख किया कि सरकार दो बड़े दलों की सहमति से बनी है और पूर्वनिर्धारित समझौते के अनुसार सत्ता हस्तांतरण किया जाएगा। उन्होंने यह भी कहा कि देश को प्रतिगमन की ओर जाने से रोकने के लिए सभी राजनीतिक दल एकजुट हैं, जिसके लिए उन्होंने उनका धन्यवाद किया।

यह भी पढ़ें: सीरिया में नरसंहार, महिलाओं को नग्न कर सड़कों पर घुमाया; गोलीबारी में 1,000 से अधिक लोगों की मौत

Join WhatsApp

Join Now

---Advertisement---

Leave a Comment