बिहार के मुज्जफरपुर में दस साल की मासूम बच्ची के साथ रेप का मामला देश भर में उस वक्त तूल पकड़ा, जब इलाज के लिए जिला अस्पताल द्वारा आगे रेफर किए जाने में देरी के चलते पटना स्थित PMCH के दरवाजे पर चार घंटो से अधिक इंतजार करना पड़ा।
इसके बाद परिजनों द्वारा निवेदन और फिर हंगामे के बाद एक क्षेत्रीय नेता की मदद से बच्ची को अस्पताल में भर्ती कराया गया। मगर बारह घंटों के भीतर बच्ची की मौत हो गई। यह घटना उस अस्पताल में हुई जिसने अपने लम्बे और गौरवशाली इतिहास की खुशी में इसी साल अपना 100 वीं वर्ष गांठ मनाई थी।
पॉक्सो केस और बाल अधिकारों की खुलती पोल
रेप जैसी गम्भीर घटना में बच्ची को स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी से जूझना बड़ी तकलीफ की बात है। किसी भी राज्य की राजधानी में समय से इलाज के अभाव में बच्ची की मृत्यु ने पॉक्सो केस पर स्वास्थ्य सुविधाओं और बाल अधिकारों की पोल खोल दी है। पॉक्सो अधिनियम की धारा 27 यौन शोषण के शिकार बच्चे की चिकित्सा जांच से संबंधित है।
अस्पताल अधीक्षकों का निलंबन
बच्ची की मौत के बाद लगातार हो रहे विरोध प्रदर्शनों ने राज्य सरकार को कुछ कड़े कदम उठाने पर मजबूर किया है। इसमें सरकार ने PMCH सहित मुजफ्फरपुर स्थित SKMCH अस्पताल अधीक्षक को भी निलंबित कर दिया है।
अस्पताल प्रबंधन ने क्या कहा
अस्पताल प्रबंधन के अनुसार उन पर यह गाज बिना सरकारी जाँच के गिरी है। साथ ही अपनी सफाई में कहा कि बच्ची की हालत स्थिर होने के बाद, आगे के ऑपरेशन (जिसकी सुविधा SKMCH में नहीं थी) के लिए पटना रेफर किया गया था।
घटना से उठते सवाल
इस हादसे से दो सवाल उठते है। पहला, राज्य में बच्चों के खिलाफ संगीन अपराधों में बढ़ोतरी होना। दूसरा, ऐसी गंभीर घटना के बाद भी समय पर स्वास्थ्य सुविधा न मिल पाना। यह सवाल सिर्फ बिहार के लिए ही महत्वपूर्ण नहीं है, बल्कि देश के लिए भी है। उस वक्त तो और भी ज्यादा जब कोविड-19 के बाद से लगातार स्वास्थ्य सुविधाओं को बढ़ाने के लिए बड़े-बड़े विशेषज्ञ लिख और बोल रहे हैं।
यह सवाल इसलिए भी जरूरी है क्योंकि राज्य में आगामी एक साल के भीतर चुनाव भी हैं। ऐसे में यह बात उठनी तय है कि क्या राज्य अपने बच्चों को सुरक्षा दे पा रहा है या उनको अभी और सहना बाकी है|
बिहार में पॉक्सो केस की हालत
कुछ सालों से बच्चो के खिलाफ होने वाले अपराध, जिसमें रेप भी शामिल है बढ़ते जा रहे हैं। पॉक्सो एक्ट लागू होने के बाद मौजूदा NCRB डेटा के अनुसार राज्य में 2013- 2022 के बीच में 11,090 केस रजिस्टर हुए है। इनमें से पांच जिले ऐसे हैं, जहां सबसे ज्यादा केस रजिस्टर हुए हैं। पटना (814), बेतिया (582), मधुबनी (555), मुजफरपुर (545) और पूर्णिया (466)।
पॉक्सो मामलों में पीड़ित बच्चों के लिए सरकारी सहायता राशि की भी व्यवस्था की गई है। बिहार राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण के डाटा के अनुसार, 2023-24 में कुल 572 पीड़ितों को 15,59,76,000 रुपये का मुआवज़ा मिला। इसमें औसत राशि 2,72,685.31 रुपये है। ये आंकड़े 1.04.2024 तक के हैं।
व्यवहार में दम तोड़ता कानून
भारत में संसद द्वारा बाल शोषण पर बने कानून बहुत मजबूत हैं। लेकिन, क्या यह प्रभावी साबित हो रहे हैं? कानूनों के अलावा जिस तरह गंभीर हालत में अस्पताल आई बच्ची को इतना बड़ा अस्पताल भर्ती करने के लिए घंटो इंतजार करवाता है, तो वहां हम इन कानूनों को भी दम तोड़ते हुए देख पा रहे है|
बिहार में स्वास्थ्य की हालत
कानून वन स्टॉप सेंटर की बात करता है पर क्या वह समय पर मिलता है? यह बिहार के गांवों में होने वाले अपराधों में एक प्रमुख सवाल है जहाँ जिला अस्पताल भी लगभग एक घंटे की दूरी पर मिलता है।
सरकारी आकड़ों के अनुसार बिहार में स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव अधिक है। ऐसे में यह जरूरी है कि इन पर अधिक ध्यान दिया जाए ताकि कोई भी अपने इलाज के लिए घंटों किसी अस्पताल के बाहर इंतजार करने को मजबूर न हो।
आगे के लिए रास्ता
जमीनी स्तर पर भयमुक्त वातावरण के लिए जागरूकता अभियान चलाते रहने होंगे ताकि इन घटनाओं में कमी आ सके। इसके लिए परिवार, प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालयों के साथ पुलिस और बाल सुरक्षा पर अच्छा काम करने वाले लोगों एवं संस्थानों को एक टीम की तरह काम करना होगा|
किसी भी घटना की तुरंत रिपोर्टिंग की जाए। बच्चों को प्राथमिक उपचार की व्यवस्था उसके करीब उपलब्ध करवाने के उपाय खोजे जाएं।
ऐसी घटनाओं के बाद पुलिस और स्वास्थ्य सेवा उपलब्ध करवाने वालों की भूमिका बढ़ती है, जिसे प्रभावी रूप से कार्यरत करवाने की जिम्मेदारी राज्य की है। बच्चों के शारीरिक, मानसिक, पारिवारिक, सामाजिक और शैक्षणिक रूप से सम्पूर्ण सुरक्षा एवं विकास को प्राथमिक देते हुए इन मुद्दों पर लगातार काम किए जाने की जरूरत है|
इसी के साथ बच्चों की सुरक्षा का मुद्दा भी उठाते रहना है। भले अपराधों में वृद्धि हो या स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी। ताकि बच्चों की सुरक्षा को प्रमुखता मिले और सरकार इसे अपने चुनावी मुद्दों में भी शामिल करे।
बिहार का मुजफ्फरपुर अपनी लीची की मिठास के लिए जाना जाए न की उपचार की कमी के कारण बच्चों की मौत के लिए, जो चाहे चमकी बुखार से हो या किसी घिनौने अपराध के कारण अस्पताल में इलाज के लिए इंतजार में।