बिहार में शिक्षा व्यवस्था से जुड़ी चौंकाने वाली रिपोर्ट सामने आई है। केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय द्वारा जारी एकीकृत जिला शिक्षा सूचना प्रणाली प्लस 2023-24 (UDISE Plus report) की रिपोर्ट के अनुसार, राज्य में 117 स्कूल ऐसे हैं, जहां एक भी बच्चा नामांकित नहीं है। हालांकि, इन स्कूलों में 544 शिक्षक बहाल हैं। स्पष्ट है कि ये सभी शिक्षक बिना पठन-पाठन के अपनी सैलरी ले रहे हैं। यह तथ्य बिहार की शिक्षा व्यवस्था में भारी खामियों की ओर इशारा कर रहा है।
स्कूलों में कम नामांकन बना बड़ी समस्या
बिहार में कुल 94,686 स्कूल हैं। इनमें से 0.6 प्रतिशत (568) स्कूल ऐसे हैं, जिनमें दस या उससे कम छात्र नामांकित हैं। वहीं, बीस या बीस से कम नामांकन वाले स्कूलों की संख्या 0.8 यानी 663 स्कूल और तीस या तीस से कम स्कूल 1.6 यानी 814 है, और 30 से कम छात्रों वाले स्कूलों की संख्या 1.6 यानी 1,515 है। 40 से कम छात्रों वाले स्कूलों की संख्या 2.4 यानी 2272 और 50 से कम वाले स्कूलों की संख्या 3.4 यानी 3219 है। यह रिपोर्ट बताती है कि बिहार में बड़ी संख्या में स्कूलों में या तो नामांकन नहीं हो रहा या फिर बच्चे पढ़ाई के लिए इन स्कूलों का चयन नहीं कर रहे।
2637 स्कूल चल रहे एक शिक्षक के भरोसे
बिहार के स्कूलों में कुल 6,57,063 शिक्षक कार्यरत हैं। वहीं कुल नामांकित छात्रों की संख्या 2,13,48,149 है। इस आधार पर राज्य का औसत छात्र-शिक्षक अनुपात (PTR) 32 है, जो राष्ट्रीय औसत के करीब है। हालांकि, राज्य में ऐसे 2,637 स्कूल हैं, जहां केवल एक-एक शिक्षक कार्यरत हैं। इन स्कूलों में कुल 2,91,127 छात्र पढ़ते हैं। इसका मतलब है कि इन स्कूलों में एक शिक्षक को औसतन 110 छात्रों को पढ़ाना पड़ रहा है। इससे स्पष्ट है कि एक ही शिक्षक छात्रों को सभी विषय पढ़ाते होंगे, इससे छात्रों को सभी विषयों के बारे में ज्ञान का स्तर क्या होगा, इसका अनुमान बखूबी लगाया जा सकता है।
स्कूल में छात्र ही नहीं तो किसे पढ़ा रहे शिक्षक
सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि जिन 117 स्कूलों में एक भी छात्र नहीं है, वहां भी 544 शिक्षक बहाल हैं और उन शिक्षकों को वेतन मिल रहा है। रिपोर्ट के अनुसार, बिहार में औसत छह से कम शिक्षक प्रति स्कूल कार्यरत हैं, जबकि राष्ट्रीय औसत संख्या सात है। लेकिन यह नहीं छुपा सकता कि बिना छात्रों के स्कूलों में शिक्षकों का होना शिक्षा व्यवस्था के मैनेजमेंट पर सवाल खड़ा करता है।
ड्रॉपआउट की बढ़ती समस्या
बिहार में ड्रॉपआउट दर भी अन्य राज्यों की तुलना में एक बड़ी समस्या बनकर उभरी है। प्राइमरी शिक्षा में ड्राॅपआउट की दर 8.9 प्रतिशत है, जबकि अपर प्राइमरी में यह बढ़कर 25.9 प्रतिशत हो जाती है। सेकेंडरी स्तर पर यह दर 25.63 प्रतिशत है। देश के अन्य राज्यों की तुलना में बिहार में ड्रॉपआउट दर सबसे अधिक है। यह दर्शाता है कि बच्चों को बिहार के स्कूलों में बनाए रखना एक बड़ी चुनौती बनी हुई है।
नामांकन में गिरावट बनी बड़ी समस्या
अगर बात करें देश में 2018-19 से 2021-22 तक की, तो स्कूलों में नामांकन मामूली वार्षिक वृद्धि के साथ यह संख्या 26.51 करोड़ से ऊपर थी। लेकिन, 2022-23 में नामांकन घटकर 25.17 करोड़ रह गया और 2023-24 में यह घटकर 24.8 करोड़ रह गया, जो पिछले दो वर्षों में में 1.7 करोड़ छात्रों (लगभग 6.4%) की गिरावट को दर्शाता है।
2018-19 की तुलना में 2023-24 में नामांकन में सबसे अधिक गिरावट बिहार (35.65 लाख की गिरावट) में दर्ज की गई , इसके बाद उत्तर प्रदेश (28.26 लाख की गिरावट) और महाराष्ट्र (18.55 लाख की गिरावट) का स्थान रहा। इस तरह बढ़ता ड्रॉप आउट और गिरता नामांकन दोनों ही बड़ी समस्या बने हुए हैं।
शिक्षकों की बहाली बढ़ी, लेकिन…
राज्य सरकार ने शिक्षकों की बहाली को लेकर बड़े-बड़े दावे किए हैं। सरकार अपनी हर सभा में कहती है कि नीतीश कुमार ने पिछले दो वर्षों में 447652 शिक्षकों की नियुक्ति दी है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने शिक्षा में सुधार के लिए कई योजनाओं लाईं। हालांकि, UDISE Plus report के आंकड़े दिखाते हैं कि शिक्षकों की बहाली तो हुई, लेकिन ये नियुक्तियां या तो उन स्कूलों में हो गई जहां छात्र ही नहीं हैं या फिर ऐसे स्कूलों में हुई जहां पर्याप्त शिक्षक हैं।
और क्या कहती है यह रिपोर्ट
बिहार की शिक्षा व्यवस्था में इन समस्याओं के कई कारण हो सकते हैं। इस रिपोर्ट में इसके कुछ कारण बताए भी गए हैं।
1.बुनियादी ढांचे की कमी होना: ग्रामीण और दूरदराज के क्षेत्रों में स्कूलों की स्थिति काफी खराब है। बच्चों के लिए बैठने, पढ़ने और स्वच्छता की उचित सुविधाएं नहीं हैं।
2. पढ़ाई का स्तर: बच्चों को स्कूल में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा नहीं मिल रही है, जिससे माता-पिता बच्चों को स्कूल भेजने में रुचि नहीं दिखाते।
3. शिक्षकों की अनुपस्थिति: कई स्कूलों में शिक्षकों का नियमित तौर पर उपस्थित न होना, इससे बच्चों की पढ़ाई प्रभावित होती है।